चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव मिथ्यात्व भंजक108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
“कोई” शब्द हटाओ अच्छा कार्य से
1.भगवान,गुरु का सहयोग नहीं-भगवान मेरी और उनकी पूजा अभिषेक मैं करूं उनका मन्दिर कोई दूसरा बना देवे यह भाव का त्याग करना,मेरा गुरु उनकी सेवा,चौका दूसरा कोई लगा देवे,ऐसा भाव मत करना,मैं बीमार हूं मैं बीमार हुं भगवान के सामने गिडगिडाना नहीं बीमारी दुर करने के लिए।
2.सहयोग नहीं पर का-मैं कुछ गलत करूं तुम मुझे बड़े सावधान कर देवे,मैं कुछ गलत करूं मुझे बडे सावधान कर देवे मजबूरी मुझे सहयोग दे देवे,मेरा सहयोग कर देवे मैं भटक जाऊं मुझे रास्ता दिखा दे देता हूं अंधा हो तो मुझे कोई रास्ता पार करा दे मुझे गुरु समझा देवे ये भाव मत करना अब वरदान स्वयंभू शक्ती चाहिए,मुझे पहले से कोई सावधान कर देवे यह भाव मत करना।
3.अपने भरोसे-मैं अपनी इज्जत स्वयं कमाऊंगा मैं पिता के भरोसे पर अपनी इज्जत नहीं बनाऊंगा,गुरु के भरोसे नहीं बनाऊंगा गुरु जैसा बनकर बनाऊंगा,भगवान के भरोसे नहीं बनाऊंगा भगवान जैसा बन कर इज्जत बना लूंगा उनके भरोसे नहीं उनके जैसा बनकर बनाऊंगा।
4.पर की शक्ति-पर की शक्ति कितनी भी जागृत हो जाए, पर की शक्ति को कितनी भी जागृत करने की कोशिश करें ,भाव करें वो शक्तियां काम आए यह जरूरी नहीं, आपके पिता बलवान है, उनका धन आप के काम आएंगे ये जरूरी नहीं ,भरत चक्रवर्ती के पुत्रों किसी को उनका वैभव, उनके दीक्षा के बाद काम नहीं आया, सगर चक्रवर्ती के साथ 60 हजार बेटे ने कहा, हम पिता की शक्ति से नहीं रहना चाहते, स्वयंभू शक्ति जागृत करना चाहते हैं।
प्रवचन से शिक्षा-अपनी शक्ति को जागृत करना है दूसरे का सहयोग लेने का भाव नहीं करना
सकंलन ब्र महावीर