16 अगस्त 2021,चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी, निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव जैन धर्म की ध्वजा108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
पूजा हमको करना है, भगवान कोई दूसरा बैठा देवे वो द्ररिद्री होगा
1.संकल्प का त्याग-कार्य मेरा है अपनों से छोटे से कार्य नहीं कराना, यह दरिद्रता का निमंत्रण देना है, कार्य मेरा है और अपनों से बड़ों से कराना, उसको भीख भी नहीं मिलेगी, भाव भी मत करना कि मेरे से बड़े को मेरे कार्य सपने में भी नहीं कराना ,भाव से मतलब है संकल्प से भी ,भाव मत करना मुझे भूख लगे, दूसरा भोजन करा देवे, यह भाव नहीं आना चाहिए।
2.गुरू आज्ञा से त्याग-मुनि बनने पर साधु ये सोचे ,आज आहार का त्याग है, कल तो आहर करूंगा, यदि यह भाव आ जाए ,तो साधु को गुणस्थान नहीं बनेगा, गुरु पीछी कमंडल शास्त्र आहार आदि का कहेंगे, तो गुरु की आज्ञा से लेना,दीक्षा लेने वाले का तो त्याग रहेगा,नियम बड़ा नहीं, उससे ज्यादा गुरु की आज्ञा बड़ी है
3.गलत धारणा-लोगों की धारणा है कि हमारा कार्य दूसरे आदमी करेंगे, तो हमारी शक्ति बढेगी, हम बड़े आदमी बन जाएंगे, स्वयंभू शक्ति का वर्णन करना, इसलिए जरूरी हो गया कार्य हमारा दूसरा करें इससे हम बड़े आदमी बन जाएंगे, अंहकार, पुण्य की लहर इससे हम गहरे गड्ढे में करेंगे।
4.मंदिर दुसरा बनावे-मुझे मंदिर के दर्शन पूजन करना है लेकिन मंदिर दूसरा बना देवे अपने खुद को अपना पुण्य करना है संस्कार करना है यह भाव भूलकर भी नहीं करना हमने दरिद्रता का निमंत्रण दिया पूजा हमको करना है भगवान कोई दूसरा बैठा देवे वो द्ररिद्री होगा।
5.बाप बेटे के लिए पाप-बाप की संपत्ति के लिए मत लडना बाप ने हमारे लिए बहुत पाप किया हमारे से राग के कारण वह पाप अपने बेटे के लिए करता है मोही व्यक्ति जिससे मोह है उससे समझता है गुरु की बात नहीं समझता हैं
प्रवचन से शिक्षा-मोही व्यक्ति जिससे मोह है उससे समझता है गुरु की बात नहीं समझता हैं
सकंलन ब्र महावीर