फूल हमे सुलाते हैं, कांटे हमें जागृत करते हैं, फूल हमारे देखने की शक्ति खत्म करते हैं ,कांटे हमारे शक्ति बढ़ाते हैं
चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी- निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव ज्ञानी ध्यानी108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
पुण्य को दुश्मन माना,पाप की निंदा नहीं की
1.गुरु कैसा-गुरु पर विश्वास मत करना,गुरु की वाणी पर विश्वास करना,गुरु से बड़े गुरु का उपदेश होता है गुरु मंत्र नहीं हो सकता, गुरु का उपदेश मंत्र हो सकता है ,गुरु से बड़े गुरु की आज्ञा होती हैं। गुरु मेरे लिए सामयिक छोड़ दें , हम खुश हो जाते हैं , दुर्भाग्य हैं हमारा
2.द्वेष अच्छा-द्वेष को नहीं ,राग को जितना है, जितना राग करते हैं, राग बढ़ता है ,जितना द्वेष ,उतना द्वेष कम होता जाता है ,लोभ ज्यादा करने पर लोभ बढ़ता है ,गुस्सा करने पर बाद में कम हो जाता है ,चाहना हमे अच्छा मानते हैं।
3.हतैषी शक्तियों छीन-चाणक्य चंद्रगुप्त को बांढ में छोड़ कर चले गए,मौत के समय काम नहीं आता ,वह कब काम आएगा, जब कोई साथ नहीं देता, तब अपनी स्वयंभू शक्ति जागृत होगी ,इसलिए हमारी शक्तियों को ,जो हमारी हितैषी छीन रहे हैं, पुण्य को दुश्मन माना,पाप की निंदा नहीं की पाप के समय सावधान रहता है फूलो पर चलने वालों को संभालना है ,कांटे वाले को नहीं सम्हालना हैं,बुरे दिनों में भगवान याद आते हैं ,पुण्य के दिनों में भगवान याद नहीं आते।
4.कांटे जागृत-प्रकृति बाह्य जगत भी है ,अंतर जगत भी हैं ,सबकी अपनी-अपनी प्रकृति है ,बुरी प्रकृति कथंचित अच्छी है ,कि बुरा नहीं होता तो ,आदमी संसार से वैराग्य नहीं लेता हैं, फूल हमे सुलाते हैं, कांटे हमें जागृत करते हैं, फूल हमारे देखने की शक्ति खत्म करते हैं ,कांटे हमारे शक्ति बढ़ाते हैं।
5.दुश्मन जगाता-मित्र को देख कर हम सोते हैं चारों तरफ दुश्मन हो हम जागते हैं हमें सोना अच्छा लगता है मित्र अच्छे लगते हैं हमारे स्वयंभू शक्ति जागृत करना है तो मित्र नहीं दुश्मन हमारे स्वयंभू शक्ति जागृत होगी।
प्रवचन से शिक्षा-गुरु से बड़े,गुरु की आज्ञा होती हैं
सकंलन ब्र महावीर