प्रकृति कभी किसी के साथ पक्षपात नहीं करती जो जैसा करेगा उसे वैसा ही भोगना पड़ेगा , आत्महत्या का भाव नहीं करना : मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

0
1716

3 अगस्त 2021,चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी, निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव महातपोमार्तंड108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
अहंकार की मौज मस्ती में जीने वाले कम हैं,दीनता की गर्त में जीने वाले ज्यादा हैं

1.पाप का भय-पाप छुड़ाने के लिए भय दिखना पड़ें तो भय दिखाओ भय के कारण यदि पाप छुटे तो भय पैदा करो कानून के भय के कारण नब्बे प्रतिशत पाप नहीं होते धर्म शास्त्रों में नरको का भय का वर्णन किया गया है जिससे आप अपराध को छोड़कर सत पथ पर चलो उन्होंने कहा कि प्रकृति कभी किसी के साथ पक्षपात नहीं करती जो जैसा करेगा उसे वैसा ही भोगना पड़ेगा उच्च गोत्र में पैदा हुआ व्यक्ति नीच कर्म करेगा तो उसे कर्म भी उसी तरीके का बंध होगा कर्म सिद्धांत में ऐसा नहीं होता कि पाप आप करे फल दुसरा भोगे नहीं आपको ही भोगना पड़ेगा।

2.सुकर दर्शन विधी-भगवान के दर्शन नहीं करते हो तुम भगवान के दर्शन जो भगवान के अभिषेक दर्शन से नहीं हुआ सुकर दर्शन विधी से रात्रि भोजन और अभिषेक पूजन करने का नियम लिया लोगों ने देव दर्शन व रात्रि भोजन का नियम सुकर दर्शन विधी से लिए।

3.चिंता का त्याग-मैं मरने का भाव नहीं हैं तो मरने का भाव का त्याग कर दो जहर नहीं खाना है जहर खाने का त्याग कर दो,फांसी लगाने का त्याग कर दो,गुटका खाने से आयु का क्षय होता है गुटखा खाने का त्याग कर दो,शराब नशा का त्याग कर दो,चिंता आत्महत्या का कारण है चिंता का त्याग कर दो।

4.दुख-चारो तरफ दुख ही दुख भरे पड़ें है दुख के भय के कारण ही आप त्याग करते हैं कोई बात नहीं पाप तो छोड़ रहे हो भय स्नेह लोभ के कारण भी पाप नहीं करते तो कम से कम पाप तो नहीं कर रहे बस इतना करना जिससे मोह किया है उसे मत मारना।

5.सद्भाव की अनुभूति-अभाव की अनुभूति मे मिथ्यात्व बंध जायेगा क्रोध मान माया में भाव का पता चल जाता है लोभ कषाएं में अपने भावों का पता नहीं चलता जो मेरा नहीं उसको ग्रहण करने का भाव नहीं आएगा जो मेरा है नहीं चाहना जो मेरा था है मेरा है नहीं मेरा होगा नहीं उन उस वस्तु के प्रति राग का भाव नहीं आना जिसको हम मारना चाहते हैं उसको मार नहीं सकते हैं।

6.संसार कैसा-संसारी व्यक्ति बहुत जल्दी होता हैं भय जल्दी आता है अहंकार की मौज मस्ती में जीने वाले कम हैं दीनता की गर्त में जीने वाले ज्यादा,राजा एक है जनता ज्यादा है चक्रवर्ती एक है प्रजा अनेक है अंहकार कम आता है दीनता ज्यादा आती हैं सद्भाव में जीने वाला कम है अभाव में जीने वाले ज्यादा है ज्ञान होने के बाद मद कम लोगों को आता है अज्ञानता का भाव ज्यादा आता हैं

प्रवचन से शिक्षा-आत्महत्या का भाव नहीं करना
सकंलन ब्र महावीर