चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव तर्क वाचस्पति108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
बच्चे भी माता-पिता से डर रहे हैं ,तो माता-पिता खूंखार है
1.संस्कार में अंतर-माता के संस्कार दोनों बेटों को एक समान है, फिर भी एक बेटा संस्कार वाला है ,एक बेटा संस्कार नहीं जैसे रावण और विभीषण एक ही माता के पुत्र थे, लेकिन संस्कार में अंतर प्रकृति ने तो समान दिया ,फिर हमारी ही कहीं ना कहीं भूल है कि हमारे संस्कार में अंतर है, हमारे संस्कार स्वभाव अलग-अलग है।
2.माता पिता खुंखार-यदि बालक मां भगवान गुरु से डर रहा है ,जो बालक माता से डर रहा है या तो माता-पिता खुंखार है, जैसे नागिन जब बच्चों को जन्म देती है ,दूर भागते हैं ,जितना जल्दी हो अपनी जान बचा सके, क्योंकि जब नागिन बच्चों को जन्म देती है, तो वह भूखी हो जाती है और अपने बच्चों को भी खा लेती है, बच्चे भी माता-पिता से डर रहे हैं ,तो माता-पिता खूंखार है।
3.प्रकृति-जो शाश्वत होता है, अविनाशी होता है ,वह कभी भी हिनादिक नहीं होता है ,धार्मिक भाषा में स्वभाव बोलते हैं ,सामाजिक भाषा में लोक व्यवहार में प्रकृति बोलते हैं, स्वभाव प्रकृति इनका एक ही भाव है ,इनका कोई कर्ता नहीं है ,जहां कोई कर्ता होता है वह स्वभाव नहीं प्रकृति खत्म हो जाती है, स्वभाव का कोई कर्ता नहीं है।
4.वस्तु का अनादि अंत नहीं-ज्ञायक है, लेकिन सृष्टि के कर्ता नहीं है ,जैसी वस्तु है वैसा जानो, तुम प्रकृति के कर्ता नहीं हूं ,आदि अंत मे भी नहीं है, कुछ कार्य तो हैं ,लेकिन हुए नहीं हैं, सूर्य में प्रकाश हुआ नहीं है, लाइट हमने की है ,इसलिए बंद हो सकती है, कब से सृष्टि का निर्माण हुआ पता नहीं ,अभी नहीं है, जो वस्तु अनादि अनंत होती है
प्रवचन से शिक्षा-प्रकृति ने सब को समान दिया, अंतर हमारी भूल के कारण हो रहा है।
सकंलन ब्र महावीर