चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी, निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव मनोज्ञ108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
अच्छी चीज का विधान किया जाता है, मजबूरी की चीज का विधान नहीं किया जाता
1.रक्त दान-रक्तदान को मुनि साधु समर्थन नहीं कर सकते क्योंकि मांस का समर्थन हो जाएगा, आपको लोग खाने लगेंगे लेकिन साधू रक्तदान का विरोध भी नहीं कर सकता क्योंकि इससे इतने जीवो की जिंदगी बचती है, उनका समर्थन नहीं कर सकते हैं विरोध भी नहीं कर सकते।
2.नौकरी-नौकर जो होते हैं, उनमें स्वाभिमान नहीं होता, वह अपनी मजबूरी में नौकरी करते हैं, अपने सेठ के प्रति नकारात्मक ऊर्जा छोड़ते हैं, जिन घरों में नौकर रहते हैं ,वह घर उजड जाते है, हाथ ठेले वाला वाला अपना मान कर कार्य करता है, मेरी कमाई मेरी दुकान है, नौकरी करने के बजाए अपना छोटा सा धंधा करो।
3.स्वरूप भुल गये-ग्रहों में सबसे तुच्छ ग्रह राहु केतु है, सबसे शक्तिशाली ग्रह सूर्य चंद्रमा है, लेकिन तुच्छ गृह शक्तिशाली ग्रह सूर्य और चंद्रमा पर आकर ग्रहण कर देता है, हमारी जिंदगी में यह पुद्गल कर्म इतने तुच्छ होकर, हमारी शक्ति महान आत्मा को अपना स्वरूप नहीं पता करने देते हैं, अपना स्वरूप मान लेता है, जो हम हैं पर्याय ज्ञात होना चाहिए, हम लोग इतने गाफिल हो गया, क्या अपने आपको जीव मानने को तैयार नहीं।
4.तुच्छ शक्ति-संसार में ऐसी विचित्र घटनाएं घटती है जैसे राहु और केतु ग्रह के द्वारा बादलों को ढग लेती है, हम अपनी जिंदगी महान शक्तियों से नहीं बचानी है, तुच्छ शक्तियों के बचानी है, हमें यह अहंकार नहीं करना है की शक्तिशाली हो, किंतु तुच्छ शक्तिया तिरोहित कर देती है, जैसे हाथी जो अपने आप को सबसे बड़ा शक्तिशाली मानता है, फिर भी तुच्छ जीव चींटी उसको मार देती है, तुच्छ चींटी से हाथी जैसी महा शक्तिशाली डरता हैं।
5.अपने समान-भगवान गुरु को जब भी भक्ति पूजन अभिषेक सेवा करते हैं, तो जब उनका आशीर्वाद अपने भक्त बनने के लिए नहीं होता, अपने सामान भगवान गुरु बनने के लिए होता हैं
प्रवचन से शिक्षा-जैन धर्म में भगवान गुरु भक्त को अपने सामान बनाने की भावना भाते हैं।
सकंलन ब्र महावीर