जब तक सम्यक दर्शन रूपी जड़ के ऊपर चारित्र रूपी वृक्ष ना लगे, तब तक वह फल फूल पत्ती आदि नहीं दे सकता है: मुनिपुंगव श्री सुधासागर

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23जुन2021, देशनोदय चवलेश्वर – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव जैन धर्म की ध्वजा108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
सम्यग्दर्शन जो धर्म की क्रिया मे सर्वोच्च करना चाहता है, वह हमेशा सर्वोच्च पद को ही प्राप्त करता है
1.दान-धर्म के क्षेत्र में जब कभी भी दान देने के लिए जाएं, तो हमेशा अपनी भावना को सबसे ऊंची रखनी चाहिए, जाते समय ऐसी भावना हो कि में सबसे ज्यादा दान दूंगा, लेकिन यदि हमारी सामर्थ्य ना हो, तो हम कितना भी दान दे, लेकिन भावना हमेशा बड़ी ही रखनी चाहिए।मुनि बनने के लिए ही हमेशा मुनि के पास जाना चाहिए। भावना हमेशा ऊंची होनी चाहिए।

2.सम्यग्दर्शन जड़-समयसार पढ़ने वाले को चारित्र मोहनीय कर्म कभी परेशान नहीं कर सकता, सम्यक दर्शन जड़ हो सकता है, लेकिन वृक्ष नहीं बन सकता, जड़ से कुछ भी नहीं मिलता, लेकिन जड़ के बिना भी कुछ नहीं मिल सकता, जब तक सम्यक दर्शन रूपी जड़ के ऊपर चारित्र रूपी वृक्ष ना लगे, तब तक वह फल फूल पत्ती आदि नहीं दे सकता है, धर्म के क्षेत्र में नीची वस्तु नहीं देखी जाती, छोटी वस्तु नहीं देखी जाती, धर्म के क्षेत्र में तो जो सबसे ज्यादा महंगी वस्तु का दान दिया जाता है, नियम लेते वक्त इस पंचम काल में जो सबसे अच्छा नियम होगा, सबसे ऊंचा नियम होगा, वही मैं ग्रहण करूंगा।

3.अधिक से अधिक-सम्यग्दर्शन से अधिक से अधिक क्या प्राप्त कर सकता है, सम्यकदर्शन सर्वोच्च शिखर प्राप्त कर सकता है, पंचम काल में सम्यग्दर्शन से अधिक से अधिक मुनि पद प्राप्त कर सकता है, सम्यग्दर्शन के साथ गृहस्थ वृति बन सकता है श्रावक यदि अधिक से अधिक क्या प्राप्त कर सकता है ,सम्यकदृष्टी मरकर 16वें स्वर्ग तक जा सकता है अधिक करने की कोशिश करेगा

4.कर्म नचा तो नहीं-बंधे हुए कर्म स्वतन्त्रता का अनुभव कैसे कर सकते हैं तुम्हें कर्म नचा तो नहीं रहा है, आप कर्म से नाच तो नहीं रहे हो सम्यकदृष्टि जिस क्षैत्र में रहता है, उतना प्राप्त कर सकता है, वो करने की कोशिश करेगा सम्यकदर्शन मोक्षमार्ग की नींव हैं, वृझ की जड़ है, वृक्ष नहीं है, सम्यक दर्शन छाया नहीं देता, वह जड़ है, जमीन के अंदर होती है।

5.अपनी सामर्थ्य से ज्यादा दान नहीं देना, लेकिन भावना हमेशा ऊंची ही रखना। तुम्हारी भावना में कोई कमी नहीं होनी चाहिए।
प्रवचन से शिक्षा-जो भगवान जी क्रिया को सर्वोच्च करता है, वह हमेशा सर्वोच्च पद को ही प्राप्त करता है। धर्म में हमारा जो स्थान है वही हमारा संसार में स्थान रहेगा

सकंलन ब्र महावीर