मरते हुए को तो कोई नही बचा सकता, लेकिन बस एक प्रार्थना करो कि मरु तो भगवान की भक्ति करते हुए मरु: मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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देशनोदय चवलेश्वर निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव सुखोदय तीर्थ जनक 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
मैंने गुरु को नहीं पकडा,मैंने गुरु के स्वरूप को पकड़ा, खोठे गुरु आपकी जिंदगी में नहीं आएंगे

1.शांतिधारा कराके मरना-साक्षात नाग नागिन को मरते हुए पार्श्वनाथ भगवान नही बचा पाए ,तो दूसरों की क्या बात,लेकिन फिर भी हमे भगवान की भक्ति पूजा पाठ और शांतिधारा को करते रहना चाहिए क्योंकि मरते हुए को तो कोई नही बचा सकता, लेकिन बस भगवान से एक प्रार्थना करो कि मरु तो भगवान की शांतिधारा करते हुए मरु, भगवान की भक्ति करते हुए मरु ।

2.अरीहन्त का स्वरूप-जब हम अरिहंत परमेष्ठी का ध्यान करते हैं, दर्शन करने हैं ,उनके नाम पर नहीं, बल्कि उनके गुणों पर ध्यान करें ना ही उनके शब्दों पर ध्यान करना है, अष्ट प्रातिहार्य, समोवशरण आदि दिखने चाहिए, अरिहंत तत्व को पकडो, अरिहंत का स्वरूप समझो ,सर्वज्ञपना ज्ञान में आना चाहिए ,परम औदारीक शरीर हैं, परम दिगंबर मुद्रा 18 दोषों से रहित ये, ध्यान करना चाहिए

3.ज्ञान सच्चा-मेरा ज्ञान सच्चे देव शास्त्र गुरु को पहचान रहा है, ये खोटा नहीं ,ज्ञान अच्छा, मन अच्छा है ,आंखें कान आदि से कितना जीवों की रक्षा करी ,आंखे धन्य

4.अतीत की भुल-व्यक्ति को वर्तमान में समर्थ हो जाता है, कार्य में सफलता मिल जाने की पूरा दिखने लग जाता हैं ,लेकिन हमने अतीत में बोये हुए काटे हमें मंजिल तक नहीं पहुंच पाते, हमारे में सब समर्थता है, फिर भी केवल ज्ञान आदि प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, इस भौतिक की चकाचौंध में मुझे सच्चा धर्म मिल सका, जो आज मैंने प्राप्त किया हैं।

5.शिविर-श्रावक संस्कार शिविर से कितने लोगों को सस्कांर मिले ,कोई न कोई जीवन में परिवर्तन आए,शिवीर से 25-30 महावर्ती बन गये।
प्रवचन से शिक्षा-किसी का अहित सोचना नही और अपना निजी स्वार्थ रखना नही।
सकंलन ब्र महावीर