सांझे का कार्य शुरू में मित्रता से होता है ,अंत बैर से होता है, जब बिखरते है, तो जन्म जन्म के बैरी बन जाते हैं: मुनिपुंगव श्री #सुधासागर जी

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देशनोदय चवलेश्वर- निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव रिद्धि सिद्धि भक्तामर मंत्रों के निर्देशक 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
क्रिया में पूजा करो और दृष्टि में पूज्य बनने का विचार करो

1.प्रत्येक आत्मा में विराजमान उस टंकोत्कीर्ण शुद्धात्म रूप समयसार जी को पढ़ने वाले क़ा यदि इन्द्रिय निरोध नही है तो उसे इतना ही पाप लगता है जितना भगवान की मूर्ति को अशुध्द अवस्था में स्पर्श करने पर लगता है दृष्टि मे निश्चय रखना और क्रिया में व्यवहार रखना यदि संसार में जीना तो

2.पंच स्थावर-जिस समयसार को पढ़ने वालों को पंचस्थावर पृथ्वी,जल,पवन,अग्नि वनस्पति अग्नि जलवायु जीवों की विराधना करते हैं जैसे की जल का उपयोग करते हैं पूरे दिन में कितने जीवों की विराधना करते हैं जल के उपयोग से करते हैं समयसार पढ़ने वाले जल का उपयोग नहीं करें पुज्य कुंदकुंद स्वामी के मुख से समयसार पढ़ना है जल का उपयोग नहीं करना है ऐसी पंच स्थावर के समयसार को पढ़ने के अधिकारों नहीं

3.कर्म के उदय के कारण आप खुश तो नहीं है कहीं दुखी तो नहीं है जब आप खुश हो तो पुण्य बढ़ेगा और पुण्य बड़ेगा और एक दिन ऐसे गिरायेगा हम कहीं के नहीं रहेगा।पुण्य जब भी उदय मैं आएगा तो आरंभ परिग्रह बढ़ाएगा ओर सीधा नरक भेजेगा।

4.साझा का कार्य सही नहीं-वस्तु का आनंद लेना है तो उसे वस्तु के लिए समर्पित होना पड़ता है सांझे का कार्य शुरू में मित्रता से होता है अंत बैर से होता है जब बिखरते है तो जन्म जन्म के बैरी बन जाते हैं अच्छे कार्य जब भी हो तब ये देखना कि कार्य के साथ कितने लोग हैं मिलकर करते हैं जब कोई कार्य दो शक्तियां मिलकर करती है तो कार्य की शुरुआत तो अच्छी अच्छी होगी लेकिन दो शक्तियों मे टकराहट होगी तो कार्य भी बिगड जाएगा जैसे चित्तौड़ के राणा प्रताप व भाईयो के आपसी बैर के कारण चित्तौड़ बर्बाद हो गया।

प्रवचन से शिक्षा-मंजिल समयसार रास्ता मुलाचार हैं।
सकंलन ब्र महावीर