साधु ने आहार ग्रहण किया तो साधु की तपस्या का फल और साधना का कुछ भाग आपके खाते में मिलेगा: मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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देशनोदय चवलेश्वर – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव ज्ञान रथ के सारथी 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
हम स्वयं के सहारे एक कदम चलना है तो दूसरे के सहारे से सो कदम मत चलना

1.साधु के लिए शुद्ध-दिगंबर साधु योग्य दाता नहीं होगा, तब तक नहीं आहार मिले साधु को कहा, सुखी रोटी खा लेना लेकिन किसी योग्य श्रावक नहीं हो उसके हाथ से षटरस व्यंजन नहीं लेना, शुद्ध चोका, शुद्ध स्थान, शुद्ध दाता, साधु ने जो आहार ग्रहण किया और तपस्या का फल आपके खाते में मिलेगा साधु की साधना का कुछ भाग आपके खाते में मिलेगा।

2.पापी का समर्थन-साधु शराब पीने वाले जैसे से आहार ले ले, पाप करने वाले से आहार ले, तो फिर गुटखा खाने वाले से आहार ले ले, तो पाप का समर्थन मिलेगा, इसलिए साधु योग्य श्रावक से लेते हैं।

3.दुसरे का सहारा मत-पर का सहारा मिलता है, तो हमें अच्छा लगता है कि हमें कुछ शक्ति मिल रही है, हमें पर वस्तु देखी, यही हमारी जिंदगी का सुख है, यदि पर का सहारा मिलेगा तो हम सुखी हो जाएंगे और अपनी मां की रोटी छोड़ देते हैं, यदि हम स्वयं के सहारे एक कदम चलना है, तो दूसरे के सहारे से सो कदम मत चलना।

प्रवचन से शिक्षा-बडे़ आदमी के द्वारा पापी को समर्थन नहीं करते हैं।
सकंलन ब्र महावीर