जैसे बीज के बगैर फसल नहीं आ सकती, ऐसे ही धर्म करके पुण्य रुपी फसल आएगी- मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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देशनोदय चवलेश्वर -n निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव जैन धर्म की ध्वजा 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
पूजन करते समय उबासी आती है, भोजन करते समय कितने को उबासी आई

1.धर्म मे आनंद-संसार के कार्य हमको हर बार नया नया आनंद आता है, ऐसे ही धर्म की क्रिया में आनंद लेना है, संसार के कार्य करते समय आनंद आता, तो आज तक नहीं आया है, ऐसे ही धर्म की क्रिया बार-बार देखने में आनंद आ जाए।जैसे बीज के बगैर फसल नहीं आ सकती, ऐसे ही धर्म करके पुण्य रुपी फसल आएगी।

2.धन्य मानना-क्रियाओं के नाम धर्म नही है,धर्म करते समय अपने आप को धन्य मान रहा है, की नही धर्म करते समय ऐसे भाव आते हैं कि अनन्तो बार कर चुके, लेकिन संसार के कार्यो मैं ये भाव नही आता ।

3.अहोभाग्य-आपके व्रत नियम आदि लिए हैं और आपको उनके प्रति अपना दुर्भाग्य दिख रहा है, आप धर्म को बदनाम कर देंगे, यदि आपका मुनि ब्रह्मचारी त्यागी बनकर अहोभाग्य आ रहा है, तो आप धर्म का आनंद ले रहे हैं, हर व्यक्ति चाह रहा है कि धर्म यह निश्चित करें कि मुझे मोक्ष मिलेगा, तो वह धर्म करूं यह धर्म निश्चिचंता नहीं देखा।

4.धर्म कि क्रियासे कल्याण-अनंतो बार हमने धर्म की क्रिया व्रत किये, तब एक बार जाकर आपके कल्याण का मार्ग खुल सकता हैं। अनंत बार मुनि,त्यागी, अभिषेक किया अबकी बार मुनि त्यागी अभिषेक से कल्याण हो जाएगा यह सोचकर करे

5.धर्म-धर्म की क्रियाओं को देखकर आदमी धर्म को ढकोसला मानता है ,धर्म तो वह वस्तु है, जो हम को सबसे महान ऊंचाइयां दे देगा, लोग बनाने के तरीके आदमी देखकर आदमी घबरा जाते हैं कि कि जब रास्ते में इतना कष्ट है, तो मंजिल में क्या सुख होगा तो उसको उसमे सुख दिखाई नहीं देता, कितनी मेहनत करके इतना सा सुख मिले, तो क्या इसलिए आदमी धर्म से विमुख हो जाता है

प्रवचन से शिक्षा-जैसे एक माँ अपने बेटे के देखकर कभी नही थकती,उसी प्रकार एक भक्त भगवान को बार बार देखकर नही थकता ।
सकंलन ब्र महावीर