बड़ों की पुज्य की बुराईयो को संग्रह करना, हमारी बड़ी भूल है, इसको हमें जल्दी से जल्दी भूल जाना चाहिए: मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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18 मई 2021 देशनोदय चवलेश्वर – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव प्रखर चिन्तक108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
रात्रि भोजन जुआ शराब गुटखा का त्याग करना समयसार की तैयारी है

1.व्यसन का त्याग समयसार-जैन दर्शन की हर छोटी सी क्रिया स्वावलंभी बनाते हैं, समयसार की तैयारी है ,सभी जुआ शराब का त्याग करना समयसार की तैयारी है, मैं इतने अंश में स्वावलंभी हो गया, मैं इसके बिना भी जी सकता हूं, आंखों को वह चीजें मत देखो ,जो जिंदगी के लिए कोई मतलब की नहीं, दिनभर काम की बातें कितनी करते रहते हैं ,जो कि काम की नहीं है उनका त्याग करना है जो हमारे काम की नहीं हैं।

2.पुज्य बडों की गलती नहीं देखना-बड़ों की गलती देखने के बाद आपको ये अहसास भी नहीं हूं कि बड़ों ने कोई गलती करी है ,हम तो पापी हैं, बड़ों को पापी देखने को तैयार रहते है ,यदि बड़ों की गलती हमने 6 महीने से ज्यादा रह गई और देखते रहे आप मिथ्यादृष्टि हैं ,इसलिए हमको बड़ों की पुज्य की बुराईयो को संग्रह करना, हमारी बड़ी भूल है, इसको हमें जल्दी से जल्दी भूल जाना चाहिए।

3.मन की सोच-इस दिशा की तरफ बढ़ रहा है, जिस दशा की जगह सर्वोच्च यदि वह दशा प्राप्त कर ली, तो आप सबसे आगे होगें, आप सबसे बड़े बनने जा रहे होंगे, महान बनने जा रहे हैं ,सबका सहारा छोड़ना पड़ेगा, मन से इतना कमजोर है कि कोई सहारा नहीं देने वाला, फिर भी हमारा भ्रम है कि मन से सहारा मांग लेते हैं, इसके लिए महाराजजी ने अकबर बीरबल का सर्दी मे गरीब का, नदी में गरीब आदमी का उदाहरण दिया।

4.दुसरे के बारे मे नही सोचे-हम घर में मंजन के लिए एक ब्रुश नहीं मिलने पर उत्तेजित हो जाते हैं, दूसरा क्या गलती कर रहा है ,हम ये सोचते हैं ,हम किस की जानकारी नहीं रखेंगे, स्वयं के बारे में सोचें अपने संबंध में सोचें हम दूसरे की बात जानना चाह रहे हैं, हमारा मन गुलाम है कि दूसरे की बात तो सुनना चाहते है , लेकिन स्वयं के घर की बात नहीं जानते हैं।

5.रात्रि भोजन का त्याग समयसार-एक दिन स्वावलंभी बनो रात्रि भोजन का त्याग कर रहे हो तो समयसार की साधना कर रहे हो हफ्ते में 1 दिन भोजन का त्याग करना है, एकासन में शुद्ध समयसार हैं।

प्रवचन से शिक्षा-उपवास समयसार है, परिग्रह की लालसा का त्याग करना है, नो कर्म को छोड़ना की तैयारी करनी है।

सकंलन ब्र महावीर