मंदिर जा रहे हैं लेकिन मंदिर जाने का स्वरूप मालूम नहीं हैं, स्वरूप को समझना है- मुनिपुंगव श्री सुधासागर

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24 अप्रैल 2021, देशनोदय चवलेश्वर-निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव प्राचीन तीर्थ उद्धारक 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
मंदिर जा रहे हैं, लेकिन मंदिर क्यों जा रहे हैं पता नहीं, ऐसे जीव विकलत्रय मे जन्म होगा

1.नहाते हुए पुण्य-हम नहा रहे हैं, नहाते हुए संकल्प करें कि हम नहा कर भगवान को अभिषेक करेंगे, मुनि महाराज को आहार दान देंगे, पूजा करेंगे, भगवान के विधान करेंगे, तो हमारे नहाते हुए वह पाप करते हुए, पुण्य लगेगा, उसे पाप नहीं लगेगा

2.प्रयोजन का पुण्य पाप-सात प्रतिमा धारी श्रावक खेती करते हुए, पूरी खेत कि हरियाली को काट देता है, कोई अपराध नहीं, जबकि जीवो की विराधना ज्यादा करी है, किसी ने पेड़ की एक पत्ती को तोड दिया, उसे पापी कह दिया, इसका निष्पर्योजन किया, जबकि किसान ने पूरी हरि को काट दिया, तो पापी नहीं कहा, उसको प्रयोजन अन्न को पैदा करके मुनि महाराज त्यागीवर्ती को आहार करा सके इसलिए प्रयोजन का पुण्य पाप हैं

3.विकलत्रय मे कौन जाता-हम रोटी खाते हैं प्रतिदिन, ग्रहण करते हैं ,लेकिन स्वाद नहीं आ रहा है, पानी पी रहे हैं, लेकिन स्वाद नहीं आ रहे है कि खट्टा मीठा क्या है,महाराज जी को मानते हैं महाराज को नहीं जानते हैं मंदिर जा रहे हैं लेकिन मंदिर क्यों जा रहे हैं ,पता नहीं, ऐसे जीव विकलत्रय मे जन्म होता हैं, हर क्रिया कर रहे हैं, लेकिन पता नहीं क्यों कर रहे हैं, हमें उसका स्वरूप मालूम नहीं है, मंदिर जाने का स्वरूप मालूम नहीं हैं।

4.संसार को समझो-अपनी आत्मा के स्वरूप को समझना है आध्यात्मिक जिंदगी में जाना है कुन्दकुन्द आचार्य को अपना गुरु मानते हो तो पहले संसार को समझो यदि वीतरागता को समझना है तो राग द्वेष को समझो, मिथ्यात्व को समझो सम्यग्दर्शन के पहले,जेल से बचना चाहते हो तो जेल को समझो,मंदिर जाने के पहले घर को समझो।

5.मैं दुखी नहीं-मैं अन्दर से दुखी हूं कुन्दकुन्द भगवान कहते हैं तो दुखी नहीं है अनुभव में आ रहा है कि मैं दुखी हूं कुन्दकुन्द ने कह दिया कि तू दुखी नहीं है,पुण्य के संबंध में जितना जानते हो उतना पाप के संबंध में नहीं जानते मुनि बन गए लेकिन मुनि का ज्ञान नहीं मोक्ष मार्ग में चल रहा है लेकिन मोक्षमार्ग का ज्ञान नहीं।

प्रवचन से शिक्षा-नहाते हुए पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।
सकंलन ब्र महावीर