देशनोदय चवलेश्वर-निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धारक 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
दुर्योधन को सबने बहुत सहयोग किया लेकिन उसने किसी को अच्छा नहीं कहा था उसने कहा आप मेरे काम के है
1.मन अशांत-दुर्योधन के पक्ष में पूरा वंश भीष्म पितामह द्रोणाचार्य,माता की शक्ति इतनी बड़ी सेना थी फिर भी हार गया क्यों हार गया, हम जैनी कुल अच्छा, भारत देश अच्छा है गुरु अच्छे मां-बाप अच्छे फिर भी दुखी है परेशान है मन अशांत है हमपर लोग तरस खा रहे हैं मारीच जैसा जीव जिसका सब कुछ अच्छा था फिर भी गधा बना सब कुछ अच्छा मिला फिर भी हम नहीं कह सकते कि मेरी सद्गति होगी,गुरु मिलने पर संसार छुटना चाहिए और हम ऐसे निकृष्ट जीव है कि संसार बढ़ा रहे हैं।
2.दो तरह के व्यक्ति-दुर्योधन को सबने बहुत सहयोग किया लेकिन उसने किसी को अच्छा नहीं कहा था उसने कहा आप मेरे काम के है दूसरा व्यक्ति वह है जो कहता है आप बहुत अच्छे हैं इसलिए मेरे काम के है।
3.दुर्योधन की दृष्टि-स्व और पर को पहचानने में बहुत मेहनत लगती है स्व व पर को पहचानने में इतना घुल मिल जाता है कि स्व पर एक जैसा लगता है राग द्वेष करना अपना स्वभाव बना लिया है जिस समय हम किसी को देखें और विकल्प नहीं हो उसे ज्ञायक स्वभावी कहा है हमारी आंखें खुली है और कुछ दिख नहीं रहा है इसको निर्विकल्प मत समझना इसका मतलब गहन विकल्प है,आपने कोई वस्तु देखी उसको देखकर आपको भाव आया कि ये वस्तु मेरी है ये दृष्टि दुर्योधन की हैं।
4.पंच स्थावर-हवाएं जल पंच स्थावर वो हमारे लिए हमारे लिए समर्पित नहीं है फिर भी हम भी काम मे ले रहे हैं बलात्कार कर रहे है उसको जबरदस्ती ग्रहण कर रहे हैं यह हमारे लिए एक दिन छोड़ना हैं। वो हमें बद्दुआए देती है
प्रवचन से शिक्षा- हमको जो भी सहयोग करते हैं उनको सहयोग लेने के लिए हमारी मजबूरी है धन्यवाद देना है उनका उपकार मानना हैं।
सकंलन ब्र महावीर