निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
एक मां बाप को छोड़कर नाथ बनते हैं, दूसरे मां बाप को छोड़कर अनाथ होते हैं
1.तुम्हें दुख के दिन याद है मतलब संसार बहुत हैं, दुश्मन ने मेरे साथ क्या-क्या कष्ट दिये यदि याद आ रहा है तो संसार मे बहुत भटकना हैं।
2.दुश्मन जब खुश होता है जब उसका दुश्मन निहत्था हो,पांडव जब मुनि बने, दुश्मन खुश हुए, उनको अपनी जीत दिखाई देने लगी,दुश्मन ने घोर उपसर्ग किया पांडवों पर
3.जगत के पास सब कुछ है, मेरे पास कुछ नहीं है, यही सोच व्यक्ति को द्ररीद्र बनाता हैं,दुनिया को सुखी बताता है, स्वयं को दुखी बताता है,धर्म कहता है सद्भाव में जीवों,अभाव मे चक्रवर्ती बन जाओ, तो दुखी रहोगे,सदा सद्भाव में जीवो अभाव मे जीवों,मुनि सबसे ज्यादा अभाव में जीता हैं,मुनि अभाव को सद्भाव बना लेता हैं।
4.गन्दी वस्तु छुपायी जाती है और अच्छी वस्तु दिखाई जाती है।हमारा शरीर गन्दा है सो छिपाया जाता है ।मुनि का शरीर स्वच्छ होता हैं
5.जब हमें पैदल चलना पड़ता है, तो हम अपना दुर्भाग्य मानता है और साधु कभी पैदल चलने को अपना सौभाग्य मानते हैं।
6.गन्दगी से पृथ्वी गन्दी नही होती, वह तो गन्दगी को भी स्वच्छ माटी बना लेती है,साधु को भी पृथ्वी के समान होना चाहिए।