निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
भगवान ने सारे मार्ग बताएं, चलना नहीं, चलना हमारे हाथ में हैं
1.साधु यह सोचे कि तीर्थक्षेत्र या शहर में साधु के इशारे से सारे कार्य होते हैं ,या पत्ता भी साधु के इशारे पर होता है , यदि साधु मान ले, तो साधु की दुर्गति निश्चित है साधु कभी क्षेत्र के मालिक ना बने,ये क्षेत्र क्षेत्र कमेटियों के हैं समाज का है।
2.न्याय गवाहों पर आधारित होता है, न्याय पर से होता है, सत्य आत्मा पर आधारित होता है, सत्य है, स्व पर होता है मैंने शराब नहीं पी, फिर भी गवाहों ने कह दिया कि मैंने शराब पी है, तो न्यायालय मुझे कहेगा कि मैंने शराब पी है, जबकि मैंने शराब नहीं सत्य आत्मा पर आधारित है, जिसकी कोई नहीं सुनता है।
3.जैन आचार्यो ने सारे मार्ग बताएं ,लेकिन चलने को नहीं कहा,जहां जाना है जाओ, लेकिन रास्ता बता दिया, नरक का रास्ता भी बता दिया, स्वर्ग का भी रास्ता बता दिया, मनुष्य गति का भी रास्ता बता दिए, तिर्यंच का भी रास्ता बताया, तो पाप को रास्ता बताया क्यों, बुराई है तो बुराई क्यों बताई और महावीर भगवान ने बुराई को छोडने को भी नहीं कहा और बुराई को मार्ग बताया।
4.आकाश के पानी में कोई अंतर नहीं किसी के स्वभाव में अंतर नहीं अशुद्धि नहीं है लेकिन शुद्ध भी नहीं है कहां से आई है जल मे अशुद्धि आकाश का स्वभाव तो निर्मल था यहां आकाश के पानी का जिससे मिलन हुआ तब वह अशुद्धि आ गई।
शिक्षा-भगवान नहीं चाहते थे तो भी वह कार्य हुआ,भगवान ने बुराई नहीं चाहते हुए भी बुराई का मार्ग बताया।