निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
महान आत्माओं को छोटे लोग जो उपाधी दे, वह सब झूठ हैं
1.जिस भक्ति में सबसे ज्यादा झूठ लिखा हो, वह भक्ति को ही अच्छी मानी जाती सबसे अच्छी मानी जाती है
2.दुर्जन आदमी को कभी महसूस ही नहीं होता कि मेरे से कोई गलती नहीं हो सकती,ऐसे लोग उनमार्गी,स्वच्छंदी, दुर्जन का यही लक्षण होता है,मेरे से कोई गलती नहीं हो सकती यह सबसे बड़ी भूल हम सब से हो रही है कि हम कुछ गलती करते ही नहीं,गलत देखते ही नहीं,गलत सुनते ही नहीं गलत कुछ मुनि महाराज से कोई गलती होती ही नहीं फिर भी मुनि महाराज प्रतिदिन जाने अनजाने गलती के लिए दिन में तीन बार प्रतिक्रमण करते हैं।
3.कुछ दुनिया की ऐसी समस्याएं है जिन को हटाया नहीं जा सकता उनका सामना करना पड़ता है प्रकृति ने कुछ नियम ऐसे बनाएं जो हमेशा सत्य है जैसे सूर्य पूर्व से उदय हो रहा है आंखों ही देखती है कानो से नहीं देखा जाता, इन प्रकृति के नियमों में प्रकृति भी चाहे तो भी परिवर्तन नहीं कर सकती।
4.कुन्दकुन्द आचार्य ऐसे भगवान हैं जो भक्तों की नजर में भगवान है,ये सर्वज्ञ नहीं यह 18 दोष से रहित नहीं है लेकिन भक्तों के लिए भगवान हैं।
5.भगवान के सामने कई बार सत्य हारता है भक्त जीतता है,भगवान कभी हारता है भक्त जीतता है, भगवान को भी भक्त को जिताने के लिए हारना पड़ता है इसके लिए उदाहरण लिया सीता हनुमान और बाल्मीकि जी का उदाहरण दिया।
6.गुरु है जो गलत लिख नहीं सकते और जो गलत लिखते हैं वह गुरु हो नहीं सकते यह गुरु का लक्षण है।गुरु जब अपनी आलोचना करें,प्रतिक्रमण करें तब हमे(भक्त)गुरु को नहीं सुनना हैं।
7.सोना को सोना रहने दो यह सत्य है सम्यकदृष्टि की नजर में सोना मिट्टी है।
शिक्षा-भक्ति के समाने गुरु भगवान होता है।पर वस्तु हमारे लिए मिट्टी हैं।
ब्र. वीरेंद्र शास्त्री