संसारी के मरने के बाद पातक लग जाता है, अशुद्धी हो जाती है लेकिन महापुरुषों के न जन्मे, न मरते सूतक, हर के ऊपर उपकार : मुनि पुंगव श्री सुधासागर

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परम पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री 108 सुधासागर जी महाराज ने बिजौलिया के पार्श्वनाथ तपोदय तीर्थक्षेत्र में प्रवचनों में कही कि-
हमें तत्वज्ञान का लाभ हो रहा था और ऋषभनाथ भगवान अव्याबाध गुण से वंचित थे । लेकिन जब आयु कर्म का बंध खत्म हो गया तब हमें कुछ भी नही कर सकते। महानात्माओं उपकार ही करते हैं कभी भी अनुपकार नही करते। संसारी के मरने के बाद पातक लग जाता है, अशुद्धी हो जाती है लेकिन महापुरुषों के जाने के बाद लोगों के सुआ दूर हो गये। न जन्मे, न मरते सूतक, हर के ऊपर उपकार। शरीर जो हमेशा अशुची रहता है वह भी उनके रत्नत्रय से सप्त धातु शरीर को पावन कर दिया कि जो जल उनसे छू जाता है वह गंधोदक बन जाता है।
आज मंदिर में घुसते ही चैत्यालय की वंदना कोई नही करता जबकि यह नौ देवों में आता है। दूर से शिखर या झंड़ा भी दिख जाये तो नमस्कार करना चाहिये क्योंकि यह चैत्यालय के अंश हैं। जब भगवान ने केवलज्ञान प्राप्त किया तब शरीर को परमौदारिक बनाकर परम संगति का उपकार किया, असमर्थ को समर्थ बना देते हैं। लेकिन दुष्ट लोग कुसंस्कार से ही उपकारी का ही नुकसान व नाश कर देते हैं और संस्कारवान जीव अनुपकारी का भी उपकार करते हैं। अब भगवान का शरीर परमौदारिक शरीर होने के बाद सिर्फ दो मल रह जाते हैं नख और केश क्योंकि नख और केशों में आत्मप्रदेश नही होते अतः उन्होंने भगवान का स्पर्श नही किया । शरीर में जहां आत्मप्रदेश होते हैं वह कपूरवत बिखर गये। लेकिन चूंकि नख और केशों से उनका किसी तरह का स्पर्श था इसलिये जहां पर भी वो गिरेंगें वह भूमि भी पावन हो जायेगी, कितना उपकार किया । सम्मेदशिखर पर जितनी टोके हैं उन्हें भगवान ने नही छूआ, उनकी परमौदारिक वर्गाणायें हर तरफ फैली है इसलिये वायु और हर जगह पावन है और जो टोंक हैं उन्हें नख, केश ने छुआ और उस भी इतना पावन बना गये। जीव को दाह देने के लिये भी ज्येष्ठ बेटा लगाता है और भगवान के पुरे प्रसंग में भवनत्रिक देव कभी नही आते और अंतिम में भवनत्रिक देव अग्निकुमार देव आते है अर्थात वसीयत उन्हें ही मिलती है और सारे देव उस भस्म को पांच अंगों पर लगाते है जबकि संसारी जीव की राख भी अपवित्र होती है। भगवान के चरण वहीं बने हैं जहां यह संस्कार हुआ और उस भूमि को इतना पावन कर गये कि वह आज भी पूज्य है और संसारी जीव आज भी दर्शन कर कर्मों को नष्ट करते हैं।

संकलन: भूपेश जैन