निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
शरणागत को शरण में लिया जाता है कभी लौटया नहीं जाता
1.माता पिता के मरने का भाव-माता पिता को मारने का भाव करना बेटे के लिए हजारों वर्षों का पुण्य समाप्त हो जाता है यह बहुत बड़ा अभिशाप है बीमार दादा दादी माता पिता भार हो जाते,यदि आप सम्मेद शिखरजी की वन्दना करने के भाव ओर एक तरफ दादा दादी की सेवा,दादा दादी की सेवा करना ज्यादा बढ़ा है सम्मेद शिखरजी की वंदना मत करना लेकिन दादा दादी माता पिता के मरने का भाव नहीं सोचूंगा,अभिषेक मुनि महाराज के आहार आदि छोड़ देना या सामजंस्य बैठाकर जाना लेकिन माता-पिता दादा-दादी के मरने का भाव नहीं सोचना।
2.सहोदरी करुणा- सहोदरी करुणा जैसे स्वयं के प्रति और अपने के प्रति करुणा का भाव क्या करता है वैसे ही जगत के प्रति करुणा का भाव जाग जाये तो उसको वसुदेव कुटुंबकम की युक्ति चरितार्थ हो जाएगी जिसका दूसरा नाम भाईचारा भी है उस के माध्यम से उसका भला चाहो चाहे वो दुश्मन हो,भाई(दुश्मन)के हाथ से तो मर रहा है,पारसनाथ से ज्यादा भगवान पारसनाथ के चरित्र की कथा से ज्यादा मिलता हैं।
3.किसी चीज से किसी वस्तु से प्रभावित होना अलग बात है जो कार्य करने के बाद जो अनुभव होती है वह महत्वपूर्ण कार्य करने के बाद बहुत बार हतोसोहित हो जाता है कार्य अच्छा है या बुरा,ठीक है या गलत है
4.आमत्रंण जिसका किया जाता है या जो आगया है उसको लौटाया नहीं जाता है शरणागत भिखारी को शरण में आ गया तो उसको लौटना नहीं।
5.भगवान को गृहस्थी के कार्य के लिए घर मे नहीं ले जाना क्योंकि भगवान का घर मे प्रवेश में मांगलिक हो लेकिन भगवान को अपने घर से लौटाना विनाश हैं।
6.भगवान कहते हैं मेरा नियम है कि भगवान भक्त को कुछ देंगे नहीं,भक्त कहता है भगवान से लिए बगैर जाऊंगा नहीं।
7.होशियार व्यक्ति सामने वाले की कमाई नहीं लुटता,कमाई का तरीका सीखना है कमाई लूटने ज्वाला डाकू और कमाई का तरीका सीखना साधुता है।
शिक्षा-भारत देश महान है इस पर गर्व करो,अपने देश की बुराई कभी नहीं करनी हैं