मुझे हानि नहीं कोई बात नहीं, लेकिन दूसरे को लाभ मिलता है,,इसमें मुझे तकलीफ होती है ऐसे लोग निकृष्टतम निकृष्ट हैं : मुनिपुंगव श्रीसुधासागर जी

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्रीसुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
अपने के द्वारा कहे हुए हैं पर कभी उलटे नहीं चलना
1.जो मेरे हितैषी है बड़े हैं, उनकी बात को मैं सत्य कहूंगा नहीं और झूठ भी कहुंगा नहीं, क्योंकि अपने लोग जो है वह कभी झूठ कहते नहीं सत्य स्वीकार करुंगा नहीं, सत्य असत्य के बीच में झुल जाऊंगा, सत्य सत्य के ऊपर उठ जाऊंगा, ना मैं सत्य बोलूंगा, ना मैं झूठ बोलूंगा, भद्र मिथ्यादृष्टि हैं।
2.भद्र अभद्र मिथ्यादृष्टि-१.यह बातें जो शास्त्रों में धर्म में रीति नीति शास्त्रो की बातें जो लिखी है यह सब मुझे समझ में नहीं आ रही है इनको मैं स्वीकार नहीं करूंगा,सत्य कहुंगा नहीं, लेकिन इनकी आलोचना, गलत भी नहीं कहुंगा ,यह भद्र मिथ्यादृष्टी है।
२.अभद्र-जो शास्त्रों की बातें हैं उनको स्विकार तो नहीं करता लेकिन शास्त्रों की बाते को दोषी ठहराता है उनकी आलोचना करता है निंदा करता है ढकोसला कहता,गलत कहता है ऐसा जीव अभद्र मिथ्यादृष्टि हैं।सबसे निकृष्टतम,दुरात्मा हैं
3.सफलता नहीं मिलती- सभी कार्य इसलिए नहीं कि जाते कि मुझे फल मिलेगा, बल्कि दुसरे के लिए भी कोई लाभ मिले , सबसे उत्तम अपनी स्वयं की चिंता करना चाहिए अपना हित हो रहा हो और दूसरे का हित भी हो रहा तो मुझे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए, मुझे हानि नहीं कोई बात नहीं, लेकिन दूसरे को लाभ मिलता है ,इसमें मुझे तकलीफ होती है ऐसे लोग निकृष्टतम निकृष्ट हैं ऐसे लोग सबसे ज्यादा अंतराय कर्म का बन्ध होता है सफलता नहीं मिलती है उनको सब उल्टा कार्य होता है, मेरे हर कार्य सब को बुरा लगता है, मेरे परिवार वालों मेरी बात नहीं सुनते हैं ऐसे लोगों की बांते।
4.हमें शास्त्रों से ज्ञान मिला इस पर विश्वास है, श्रद्धा है लेकिन यह शास्त्र की बातें पर विचार से ज्यादा जो आचार्य भगवन ने जिनवाणी लिखी है ,वह प्रमाणिक है, उनसे हम जिनवाणी को प्रमाणिक मान लेते हैं, जैसे मानतुंग आचार्य का भक्तामर में अनेक बीमारियों के लिए एक एक स्त्रोत मे मंत्र दिया, वह बात हम सोचा करते हैं, इसलिए क्योंकि हमें पुज्य मांगतुंग आचार्य पर हमारा विश्वास है इससे भक्तामर पर विश्वास है।
5.सब अपने स्वार्थ के लिए गुटखा व्यसन आदि झुड़ाते हैं, लेकिन जब मैंने गुरु महाराज ने गुटका आदि के लिए बोला कि गुटखा आदि गलत है, नुकसान देह है, इसलिए गुरु जो निस्वार्थ है, गुरु के कहने पर मैंने गुटखा आदि व्यसन का त्याग कर दिया।
6.सत्य कहने में क्या बाधांए है, समझ में नहीं आया सत्य है, ऐसे स्वीकार कर लेना वह सम्यकदृष्टि है,समझ में आने के बाद सत्य को स्वीकार कर लेना, वह सम्यक चारित्री हैं।
शिक्षा-शास्त्रों की बात समझ में नहीं आती है इनको स्वीकार नहीं करना तो कोई बात नहीं, लेकिन इनका गलत,विरोध नहीं करूंगा।