लोग भगवान का घर देखना पसंद नही करते और खर्च करके खूंखार प्राणी की एक झलक के लाखों खर्च कर देते है : मुनि पुंगव श्री  सुधासागर जी

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परम पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री 108 सुधासागर जी महाराज ने  (12-2-21) बिजौलिया के पार्श्वनाथ तपोदय तीर्थक्षेत्र में प्रवचनों में कही कि-
समीचीन रुप से अपने जीवत्व का आनंद लेना, सृष्टि का आनंद लेना है तो वह तीन लक्ष्य बनाये, सृष्टि को द्रव्य दृष्टि से देखों उसको मेरा-तेरा का भेद करके मत देखो, जैसे जू में देखते हो और सिर्फ देखते हो उसी तरह से बिना विकल्पों के दुनियां को देखो तब सुंदरता दिखाई देगी। जब हम हिंसक, पापी जीवों को मात्र झलक देखने के लिये लाखों खर्च करके जंगलों में जाते है तो डाकू से बैर क्यों, इसलिय सबकुछ समभाव से देखो।

लेकिन चिंतन का विषय यह भी है कि लोग भगवान का घर देखना पसंद नही करते और खर्च करके खूंखार प्राणी की एक झलक के लाखों खर्च कर देते है एक व्यक्ति वाटरफाल देखने गया। वहां पहुचकर टैक्सीवाले से भी बोला आप जाओ तो जिज्ञासा से उसने पूछा कि इतना अच्छा और कही नही है तो टैक्सी वाले ने कहा कि ऊपर से पानी गिरता है, नीचे चट्टान पर उछलता है और पानी का धुंआ और है क्या। मगर यात्री को आंनद आ रहा था। अर्थात यदि हम दृश्य को एक रुपता में देखगें तो आनंद आयेगा ही और अलग-अलग करके देखगें तो कुछ न आयेगा। इसी प्रकार यहां पर पूजन, दृश्य, प्रवचन आदि यदि एक रुपप्ता से देखेगो तो आनंद आयेगा। एक कपड़े को दर्जी काटता है और एक चूहा काटता है लेकिन चूहा वाल कपड़ा निर्मूल हो गया और दर्जी जो काट रहा था उसके लिये  हम पैसा खर्च करते हैं, क्यों कि दर्जी सिलना जानता और चूहा सिल नही सकता और दर्जी काटने के बाद उसे नया और सुंदर रुप देता है अर्थात ज्ञान का फर्क है, इसी तरह इस संसार में कहीं पर भी भेद विज्ञान करो- आत्मा में भी दर्शन-ज्ञान का, पुण्य-पाप का, अच्छाई और बुराई का, इत्यादि करते जाओ जब एक ईकाई पर आ जाओ तब वह अभेद पर पहुंचेगो। अशुद्ध से शुद्ध की ओर बढ़ो।

द्रव्य दुष्टि से दिव्य-तत्व दृष्टि बनाओ।

भाग्य भरोसे मत रहना, पुरुषार्थ मत छोड़ना। बच्चों को गरीब बनाकर पढ़ना तो ही बच्चे सफल होगें क्योंकि उसे अनुभूति रहेगी कि मुझे अपनी जिदंगी बनानी है और अमीर बनकर पढ़ाओगे तो वह सम्पति खाक हो जायेगी। जो बाप की कमाई पर रहा या झगड़ रहा वह अंत में रोता पाया जायेगा और जो स्वयं पर रहेगा वह जंगल के पेड़ के समान हरियाता रहेगा। तीर्थंकर गर्भ में आते हैं तो छह महिने पहले ही देवता भी स्वागत की तैयारी करते हैं मगर आज संसार में कौन मां या परिवार अपने मेहमान का स्वागत करता है। नारी को बेटा पूज्य बनाता है।

इतना गर्भ कल्याणक का अतिश्य की 100 किलोमीटर के दायरे में कोई पाप नही होता, सब जगह समृद्धि ही समृद्धि, उस बालक का चरण जल गंधोदक और हमारे ऊपर जल गिरे तो मल हो जाता है। समाज को सुधारने के लिये मुनि श्री ने अहवान किया कि भी गर्भ के पहले योजना से फिर स्वागत से तभी संस्कारित जीव आयेगा और तुम्हें भी पूज्य बना देगा जैसे तीर्थंकर के गर्भ का अतिश्य होता है।

संकलन: भूपेश जैन