धर्म का अर्थ यह नहीं संकटों को दूर करेगा बल्कि धर्म संकटो को सहन करने की शक्ति देता है: मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा

भौतिकवादी कहता है भुख लगी है रोटी लाओ,धार्मिक कहता है, भूख लगी है सहन करो, उपवास करो

चमत्कार आप की श्रद्धा मे चमत्कार हैं

1.मरने मे आनंद-सुकौशल महामुनि महाराज,पारसनाथ भगवान को पत्थर मारने में आनंद आ रहा है मरने में आनंद आ रहा है अग्नि लगी है अग्नि जलने में आनंद आ रहा है भूखे हैं, भूखे रहने में आनंद आ रहा है, धर्म का अर्थ यह नहीं संकटों को दूर करेगा बल्कि धर्म संकटो को सहन करने की शक्ति देता है।

2.धर्म से सहन-उपवास करने वालो को ताकत मिलती हैं ये हमने सुना है लेकिन हम देखते हैं कि वह शाम तक अपने को कमजोर महसुस कर रहा है, शास्त्र की भाषा और अनुभव मैच नही कर रहा है सारी दुनिया कह रही है कि भूख लगे तो रोटी खाओ महावीर कहते है कि भूख लगी हैं तो उपवास करों, थोड़ा कष्ट सहन करों,जो जो तुम्हें चाहिए उससे तुम्हारा स्वाभिमान खडित होगा पारसनाथ पर उपसर्ग हो रहा था चाहते तो रोक देते इतनी शक्ति थी लेकिन उन्होंने सहन करने में आनंद मनाया।धर्म सहन करना सिखाता है।

3.मरने से डरो मत-अतित में हुई गलतियों को आदमी भूल सकता है लेकिन वो ही परिस्थितियों भविष्य में उदय मैं आकर परेशान करती है डर लगता है कि आगे ऐसा नहीं हो जाए उसका निदान तो होना चाहिए मरना निश्चित है मरना स्वीकार नहीं करना चहाता मृत्यु को महोत्सव का रूप प्रदान कर दो,मरने से तो नहीं डर रहे हो।

4.भय मुक्त-भय से मुक्त हो जाये परिवार सब कुछ सही है फिर भी भय वना रहता है कैसे भय से मुक्त इस पर विचार करना है।जैन दर्शन मे भय से मुक्त होने के लिए कहा गया है इस विपदा मे धर्म पर से विश्वास ना उठ ना जाये इसलिए सावधान होने की जरूरत हैं।

5.सहज भाव-हम मजबूरी में हैं जब संकट में हूं तब धर्म के पास आते हैं ऐसे लोग धर्म को बदनाम कर देगा क्योंकि जो लोग जब उनका कार्य धर्म से नहीं हुआ होता तो धर्म का विरोधी हो जाएंगे जो धर्म में सहज भाव से आएगा वह धर्म को चाहता है धर्म से नहीं चाहता।

6.गुरु को उलाहना-गुरु को भी उलाहना देते हैं महाराज जी आपके

शान्तिधारा से हमारा मरीज नहीं बचा  शान्ति धारा कोई मिक्चर नही है ये तो परिणामो मे सहज भाव हैं। निर्मलता है

प्रवचन से शिक्षा-संकट में माला फेरना चाहिए संकट को दुर करने के लिए नहीं,संकट को सहन करने के लिए।

सकंलन- ब्र महावीर