धन और धर्म दो चीजें ऐसी है जो अच्छे-अच्छे को आकर्षण से विमुख कर देता हैं : मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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धन और धर्म दो चीजें ऐसी है जो अच्छे-अच्छे को आकर्षण से विमुख कर देता हैं : मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी
निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
धन और धर्म दो चीजें ऐसी है जो अच्छे-अच्छे को आकर्षण से विमुख कर देता हैं
संयमी की बात पर विश्वास करो,असंयमी की बात पर नहीं
1.कौआ उत्तर की तरफ मुख करके बोले तो अशुभ सूचना,पूर्व की तरफ मुख करके बोले शुभ होता,हम को किसी से लगाव हो उसके जीवन में कोई घटना घटे तो हमें अच्छा नहीं का एहसास होता है।
2.भरत चक्रवर्ती कहता हे भगवान मैने संसार मे सबसे बडा पाप किया है जो इस 84 खंड का महल मिला है मकान दिखते ही तुम्हें जैल दिखता है या महल दिखता है।
3.जैन धर्म के भाव पक्ष को नहीं समझाते है जैन धर्म को अवसाद वाद कहते हैं अवसाद वाद का मतलब होता संसार की ओलाचना,संसार में नकारात्मकता भर देखता हैं जैन धर्म के बारे में,हर धर्म को संसार में सुख दिखता है,जैन धर्म में मुमुक्षु को रुप और संसार से विरीक्ति निसार बताएं।
4.अचतेन से ऊर्जा लेना है बस आपको उससे संबंध बना लेना हैं
5.जिस पकवानो के लिए हम मरते है मुमुक्षु ने जहर की संज्ञा दे दी उसको, जो जर जोरु ओर जमीन के लिए मरते है मुमुक्षु को वो बेड़ी नजर आई।
6.संसार से सारे देवता एक साथ आ जाए परंतु किसी देवता मैं इतनी हिम्मत नहीं हैं कि जिसको णमोकार मन्त्र आता हो उसे मात्र स्पर्श भी कर सके।।
7.जैन दर्शन एक मात्र ऐसा दर्शन है जो मात्र पाप से ही नही पुण्य से भी घृणा करता है ।
शिक्षा-धन मे इतना आकर्षण है महावीर ने उसे पाप की उपमा दे डाली
संकलन ब्र महावीर