अपने बुरे दिन जब आते हैं तो हमें अपने बुरे दिनों के लिए भगवान,गुरु अपने बड़ों पर आरोप नहीं लगाना, स्वयं के कर्मों पर आरोप लगाना : मुनिपुंगव श्री सुधासागर

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
84लाख योनियों मे मनुष्य पर्याय मे ही दान दे सकते, दान दे लो
1.84लाख योनियों में कोई भी दान नहीं दे सकता,मंदिर नहीं बना सकता। देवता जब मरता है, तो वह नया देवता उसकी जगह आ जाता है, देवता को पहले जैसा यथावत सब कुछ प्राप्त हो जाता है, इसलिए देवता का धन सरकारी होता है वह दान की कोटी में नहीं आएगा,दान दे सकता है केवल मनुष्य पर्याय मे दान देकर ये सौभाग्य जगा लो नहीं तो दान अगली पर्याय में दान नहीं दे पाओगे, तरस जाओगे
2.जैन होकर जो आज पुजा, अभिषेक दान पुर्वक कर पा रहे हैं, वह असंख्यात वर्षों तक नहीं कर पाएंगे,सातवे नरक का नारकी भी सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेता है तो हम मनुष्य पर्याय प्राप्त नहीं कर पा रहे।
3.अंजन चोर, भरत चक्रवर्ती ने जो कार्य 48 मिनट के अंदर किया वह हम अपनी 100 वर्ष की जिंदगी में नहीं प्राप्त कर पा रहे हैं।
4.जब हम रास्ते पर चलते चलते शाम होगी ही होगी कार्य पूर्ण नहीं कर पाएंगे, रास्ते में विश्राम करना पड़ेगा,पैर थक जाएंगे, दिन छोटे पड़ रहे हैं ज्ञानी, मंजिल को अंतरमुर्हत में प्राप्त कर लेता हैं।
5.भूखे रहकर पहले मंदिर बनवाया, मकान नहीं बनवाया, भूखे रहकर मुनि महाराज को पहले आहार दिया, बाद में भोजन किया, ऐसे मंदिर बनाने में अपने लिए महल आदि अगले भव मे जन्म से ही मिले, उसको,मुनि महाराज को आहार देकर भोजन करने से भोगभूमि आदि वैभव प्राप्त हुए।
6.अपने बुरे दिन जब आते हैं तो हमें अपने बुरे दिनों के लिए भगवान,गुरु अपने बड़ों पर आरोप नहीं लगाना है स्वयं के कर्मों पर आरोप लगाना है।हमने भगवान गुरु पर अविश्वास किया उनके आशीर्वाद पर अविश्वास किया है, यह घोर अपराध किया।
7.सम्यग्दृष्टि मुनिराज को बीमार देखकर ये सोचता है कि इतनी भयंकर व्याधि के होते भी ये मुनि चर्या को पाल रहे हैं मुनि धन्य है
लेकिन मिथ्यादृष्टि ये सोचता है कि ये तो मुनि होते हुए भी तपस्वी होते हुए भी अपनी व्याधि को दूर नही कर पा रहे ये कैसे मुनि है ।।
शिक्षा-जब जब संकट आये किसी निमित्त(दूसरे)पर थोपते हैं उसके बुरे दिन ओर बढ़ेंगे।
-ब्र दिपक आरोहण