कभी अप्रभावना मत करना, ये सबसे बडी प्रभावना है : मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा

अपने मन को धन्यवाद दिया करो

1.मेरा मन अच्छा हुआ कुछ अच्छा हुआ मेरे मन में कुछ अच्छाई सोची है मन अपवित्र नहीं हो जाए,पुरी ताकत लगा दो,अशांत मत होने देना मन मेरा मन शांत है अच्छा है,अपने मन को कभी धन्यवाद दिया करो मुझे ऐसा मन पाकर धन्य हुआ,मन धन्य नहीं मे ऐसा मन पाकर धन्य हुआ।

2.महावीर भगवान को हम कहते हैं भगवान मे जिंदगी भर भक्त बना रहो भगवान खुश नहीं हैं वह कहते हैं कि भक्त नहीं, एक दिन मेरे समान भगवान बनने की शक्ति है भगवान बनने की साधना करके भगवान बन।

3.अच्छे लोगों की कुछ विशेषताएं होती है वह अच्छे लोगों की कम सोचते हैं ,बुरे लोगों की ज्यादा सोचते है, महान लोगों की विशेषता होती है अच्छाई की कम चिंता करते हैं, बुराई की चिंता ज्यादा करते, अच्छा व्यक्ति वो ,है जो अच्छाइयों की नहीं, बुराइयों की चिंता करो है।

4.कभी अप्रभावना मत करना, ये सबसे बडी प्रभावना है जिनके मन पवित्र होते हैं उनके मन में कौन नहीं बसना चाहता।

5.उचाईयो तक जाने को हमारा मन ललकता है पर उचाइयां देख कर मन कांपता है ।

6 बौद्ध ने भी जैन दर्शन को स्वीकार किया था,जैन मुनि बने थे लेकिन ज्यादा देर नही टिक नही पाए, घबरा गए ओर छोड के भाग गए।इसलिए भाव करना सरल है लेकिन कर के दिखाना कठिन है।

7.बाहुबली की साधना को यदि कोई चुनोति दे दे वह ही मोक्ष जा सकता है ।।