भगवान आपके मंदिर में कभी कोई जरूरत पड़े, कोई बोली लगे – मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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देशनोदय चवलेश्वर – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव प्रखर चिन्तक108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
जो तुम्हारे साथ घटित हुआ वह दूसरे के साथ भी हो जो जो दुख आपमे है वह दूसरों में वह दुख तो दुसरो मे तो नहीं देखना चाहते हो

1.समर्थता-भगवान ने आपके चरणों में आऊं तो अपने हाथ से एक मुट्ठी अर्घ ले कर आऊ मैं बीमार हूं तुम्हें इतनी शक्ति देना कि मैं आपके चरणों में आकर दर्शन कर लो भगवान आपके मंदिर में कभी कोई जरूरत पड़े, कोई बोली लगे और मेरे हाथ में कुछ नहीं है, इतनी शक्ति जरूर देना भगवान कि मैं आपके चरणों में कुछ चढ़ा सकूं, कुछ आप के मंदिर में कुछ कर सकु

2.तीन विचारधारा-निधित्ति निकाचित्त कर्म जो तुम्हारे साथ घटित हुआ वह दूसरे के साथ भी हो जो जो दुख आपमे है, वह दूसरों में वह दुख तो दुसरो मे तो नहीं देखना चाहता है, मेरा नाश हो तेरा नाश हो ऐसा परिणाम आपके मन में हो तो नहीं आ रहा है

२ संसार में मुझे दुख है तो दूसरे को दुख नहीं हो मैं गरीब हुं दूसरा गरीब नहीं हो यह भद्र मिथ्यादृष्टि है

३ सम्यगदृष्टि वह है जो मैं अशुद्ध हो लेकिन अपने पुज्य पुरुष को अशुद्ध नहीं होने दूंगा।

3.स्वयं गंदा पर को गंदा-भगवान आपने जो कार्य का त्याग कर दिया मैं उन कार्य को आप से नहीं कराऊंगा आप ने संसार की विवाह, व्यापार आदि क्रियाओं नहीं करूंगा इनका त्याग कर दिया,मिथ्यादृष्टि स्वयं गंदगी में पड़ा है और बड़ों को भी गंदा कर देता है महापापी मे पापी तो हूं दुनिया भी पापी हो जाए यह भावना भाता हुं।

4.दोष से आकर्षित-समंतभद्र आचार्य ने कहा भगवान ने आपके वैभव पुण्य को देखकर अष्ट प्रातिहार्य को देखकर मैं आपके दर्शन को नहीं आया हुं यह तो सब मायावी भी कर लेता है फिर मैं आपके पास इसलिए आया हूं कि आपके दोषों नहीं हैं इसलिए आप दोषों से रहित होते हैं इसलिए आपके दर्शन को आया हुं।

5.शांतिधारा-शांति धारा का नाम से ही शांति हो जाती है शांति धारा एक दुआ है दवाई जब फेल हो जाती है तब शांति धारा काम करती है और जब शांति धारा काम नहीं करेगी तब स्वयंभुवा काम करती है।

प्रवचन से शिक्षा-मुझे इतनी शक्ति देना कि मैं आपके चरणों में आकर दर्शन कर लो,कुछ आपके चरणो मे दे सकु।
सकंलन ब्र महावीर