निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
स्वयं की दृष्टि मे सम्यग्दृष्टि मत मानना
अनुभव कभी झूठ नहीं बोलता, लेकिन अनुभव कभी प्रमाणिक नहीं होता हैं
1.धर्म क्षेत्र में कभी झूठ नहीं बोलूंगा भगवान के सामने खुली किताब रखूंगा क्योंकि भगवान के सामने बेईमान हो ही नहीं सकते, भगवान की हा मे हा नहीं,जो अनुभव मे आ रहा है वैसा अनुभव करो,कुछ समझ मे नही आ रहा हैं कि आत्मा भगवान हो कि नहीं यदि कहा तो लोग मिथ्यादृष्टि कहेगे तो भी सच सच कहो भगवान के सामने कि मैं मिथ्यादृष्टी हुं,सम्यग्दृष्टि जैसा कहा वैसा अनुभव में आ जाए।
2.धर्म संसार में दोनों के बीच में द्वंद है भगवान कहते हैं अजर अमर अविनाशी हो लेकिन हम डरे बैठे हैं। हर पल पल मर रहे हैं इसकी अनुभूति हो रही है एक सी अनुभूति हो जाए भगवान और हमारी अनुभूति एक जैसी हो जाए,फेल ज्यादा हो रहे हैं पास कम हो रहे हैं।
3.जब भगवान की तरफ देखते हैं तो भगवान बनने के भाव आते हैं हम भगवान बन नहीं पाते,जब भगवान को सुनते हैं तो हमेशा चिंतन करते हैं लेकिन वैसा अनुभवी नहीं कर पाते, भगवान को देखते हैं वह हम देखने में नहीं आता,भगवान की वाणी सुनते हैं लेकिन हम उसको समझते नहीं हैं,यह दोनों विसंवाद भक्त और भगवान के बीच चल रहे हैं।
4.अपनी आँखों को बेईमान कहता है अपने करनी के को कौन बेईमान कहता है,इसलिए हम जो भी करते हैं देखते हैं उसको सही दिशा देने वाला चाहिए और उसी का नाम गुरु हैं।
5.दृश्य पाप अनुभव में आता है अदृश्य पाप का अनुभव भी नहीं आता।
शिक्षा-पर के कार्य में कभी भी ईमानदारी हो ही नही सकती है।
संकलन ब्र महावीर