आंख का अपने सुख के लिए व्यक्ति अय्याश, है दुर्घटना से बचना वह भोगी, आंखों का उपयोग दुसरे के लिए वह महाराजा : मुनिपुंगव श्री सुधासागर

0
1376

देशनोदय चवलेश्वर – निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव रिद्धि सिद्धि भक्तामर मंत्रों के निर्देशक 108श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
बडा कौन जो छोटे व्यक्ति के लिए झुक जाये वह बड़ा है,बड़ों के सामने तो दुनिया झुक जाती है
1.राजा महाराजा का लक्षण-आंखों से सुख भोगते हैं सौंदर्य पेड़ आदि को भोंगते,अच्छा व्यक्ति धर्मात्मा जीव इतनी दृष्टि बनी रहे कि भगवान गुरु का दर्शन जिंदगी भर होता रहे यह अच्छा भक्त हो सकता है लेकिन आप राजा महाराजा नहीं हो सकते,आंख का अपने सुख के लिए अपने सुख का साधन बना लिया ये व्यक्ति अय्याश है जो दुर्घटना से बचना चाहता है आंख का उपयोग किया वह भोगी हैं।जिसने आंखों का उपयोग दुसरे के लिए करता है वह महाराजा राजा होते हैं।
2.बडा कौन-रास्ते में अंधा जा रहा था चार व्यक्ति मे से पहला व्यक्ति ने कड़क शब्दों में कहा अंधे हो रास्ते मे क्यों आ रहे हो,दूसरा व्यक्ति आया साइड में चला करो अंधे हो,तीसरे व्यक्ति आया साइड में चलो नहीं तो ठोकर लगा देगा भाई,चोथा व्यक्ति ने पकड़ कर कहा सूरदास जी साइड मे चलो नहीं तो कोई ठोकर मार देगा अंधे व्यक्ति ने कहा आप राजा हो और जो आपके पहले वो मंत्री, तीसरा हवालदार पहला कडक पुलिस वाला था।
3.साहुकार साधु कौन-हम साहुकार और साधु कैसे बने गृहस्थ बनना चाहता है साहुकार और जो संसार से दूर जाना चाहता है वह साधु बनना चाहता है दुनिया को तुम अनुकूल बनाना चाहते हो साहुकार नहीं तुम अय्याश हो,सज्जन साधु की दृष्टि मे निंदनीय हैं।
4.भुदान से लाभ-जिसने भुदान किया है वह व्यक्ति अगले भव मे बिल्डर के यहां जन्म होगा,कोई व्यक्ति भगवान की भक्ति करते समय हुआ मरा वह भगवान के समोवशरण मे मिलेगा और गुरु के प्रवचन में आते समय मरा व्यक्ति केवल भगवान के समोवशरण मे मिलेगा, भगवान,गुरु के लिए जो फुटपाथ पर आ जाये है उसको अगले भव अकृत्रिम चैत्तालय में पूजा करते हुए मिलेगा।
5.साधु-साधु को आंख चाहिए जो साधु अपनी आंख को भगवान को देखने के लिए नहीं चाहिए बल्कि वह अपने आंखो को तुच्छ जीव बचाने के लिए आंखों का भोग करे इसीलिए महाराजा होते है।
6.अपनी जिंदगी मे इतना पुण्य जरुर कमा लेना जिस मां-बाप के यहाँ जन्म लो उनके पास अपना मकान हो
7.सबसे पहले यदि जमीन की तीर्थ को मंदिर को जरुरत हो तो चुकना मत
प्रवचन से शिक्षा-दुनिया को तुम अनुकूल बनाना चाहते हो साहुकार नहीं तुम अय्याश हो,सज्जन साधु की दृष्टि मे निंदनीय हैं।
सकंलन ब्र महावीर