निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने 09 फरवरी प्रवचन मे कहा
॰ दूसरे के प्रति बिना लोभ, भय के प्रेम व वात्सलय भाव ही आपको सुख की अनुभूति कराता है। वात्सल्य भी तीर्थंकर प्रकृति के बंध का कारण होता है। दो भाइयों में तकरार हो कोई बात नहीं, मगर यदि जिदंगी में कोई संकट आएगा तो उसकी साहयता का भाव हमेशा रहना चाहिये।
॰ महावीर ने कहा की गरीब की भी मदद करो, यदि नहीं करी तो तुम्हारे ही डाका डालेगा और उसकी यदि आवश्यकता को पूरी कर देगो, तो तुम्हारे कभी डाका नहीं डलेगा।
॰ कर्म कुत्तों के समान है जैसे कुत्ते से डरो तो वह तुम्हें काटने दौड़ता है और वही डटे रहो या फिर डंडा दिखा तो चुपचाप बैठ जाता है। उसी तरह जब कर्म उदय में आये तब भागना मत और डटे रहना और जब फिर भी ज्यादा सताये तो गुरु का, भेद विज्ञान का डंडा घुमा देना वह दुम दबाकर भाग जायेगा।