निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
मैं भगवान से चाहिए, भगवान नहीं चाहिए, यह विपरीत बुद्धि है
1.से-हम भोजन स्वाद के लिए कर रहे हैं भूख मिटाने के लिए नहीं,हमको नारी को देखकर विकार भाव आता है हम लंपटी को सजा,तुमने दवाई को भोजन बना लिया है तुम आवश्कताओ की पुर्ती करना चाहते हो,तुम दीपक नहीं चाहते दीपक से चाहिए,हर संबंध में “से” लगा दिया।
2.श्री कृष्णजी-श्री कृष्ण जी ने अर्जुन व दुर्योधन दोनों भाइयों में से किसका पक्ष लेना है न्याय व अन्याय दोनों खत्म हो जाए तब कृष्णजी ने सोचा कि कौन मेरे को चाहते हो या मेरे से चाहते हो तब दुर्ओधन ने कृष्णजी से मांगा कृष्ण जी को नहीं मांगा और सेना मांग ली अर्जुन ने कृष्णजी से कृष्णजी को मांगा
3.रुपये-एक कारण होते हैं लेकिन अनेक कार्य देखे जाते हैं रिजर्व बैंक में रुपया मिलते है उस मुद्रा से धर्म करके पुण्य भी कमा सकते हैं उसे रु से संसार के सभी प्रकार के पाप भी कर सकते हैं
4.बडी शक्ति से मांगना-बहुत से लोग धर्म करते हुए भी धर्म सम्यक नहीं कर पाते आपने दान यदि भुखा न सोना पड़े इसलिए दान किया तो आपको रोटी मिल जाएगी गरीब दुखी अपनी आवश्यकताओं से ज्यादा नहीं सोच पाते हैं बीमार आदमी यही तो सोच सकता है कि मेरी बीमारी दूर हो जाए हम अपनी पूरी जिंदगी लगा देते हैं दुख दूर हो जाओ कितनी बड़ी शक्ति से अपनी छोटी सी मांग करते हैं बडी शक्ति का यह अपमान हैं।
5.छोटी सी मांग-हम भगवान से छोटी सी मांग करते हैं जैसे भूख लगी है भूख मिट जाए ये ही सोचते हैं बल्कि यह सोचना चाहिए कि क्षुधा हमेशा के लिए मिट जाये भूख मर जाती हैं इसके लिए औषधि का सेवन करते हैं कि भुख खत्म नही हो जाए।
6.पानी पानी को खिंचता है जैसे नारियल को लेकर पानी कहां निकलेगा यह पता चलता है उसके प्रकार भक्त का पैसा भक्त कमेटी को मिलता है
शिक्षा-मे भगवान,गुरू की इच्छा पुरी कर संकु।
सकंलन ब्र महावीर