साधु खाने के लिए नहीं जीता, जीने के लिए खाता है : मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
साधु खाने के लिए नहीं जीता, जीने के लिए खाता है
1.साधु रोगी के समान आहार-दुनिया में जाओ वही खरीदो जिसकी जरूरत हो वो मत खरीदो जिसकी जरूरत नहीं जैसे मेडिकल में दवाई सभी रखी है लेकिन अपनी पर्ची पर लिखी है रोगी वो ही लेता है पर्ची के अलावा रोगी दवाई नहीं लेता इसी प्रकार साधु भी रोगी जैसे ही आहार ग्रहण करता है
2.आहार औषधि समान-आप अपनी सुची बना लो कि क्या क्या क्या लेना है क्या नहीं लेना बीमार है इसलिए भोजन कर रहे हो किस कारण से भोजन कर रहे हो या आपको निश्चित करना,क्षुधा रोग निवारण के लिए आहार कर रहा हूं जो वैध जी ने बताया उनके अनुसार ले रहा हूं उसके अलावा नहीं लेना है।साधु को क्या लेना है यही देखना है बाकी सब सब हटा देता है
3.बिजोलिया-जब किसी वस्तु के अनुप पहलू हो जाते हैं तब किस पहलू को उजागर करें यह सोचने लग जाते हैं बिजोलिया क्षैत्र पर सबसे पहले स्तम्भ थे उसकी पूजा कर लेते थे फिर निज मंदिर के छोटे बाबा आए फिर जो निधियां मिली उससे यहां के लोगों को दुविधा में डाल दिया किसके दर्शन व पुजा करे।
4.साधु सेठ के नौकर के समान आहार-साधु आहार के लिए चोके में आता है वह सेठ के यहां नौकर जैसे,नौकर जैसे सामान लेने जाता है उसी प्रकार जाता है जैसे नौकर के समान इसको शरीर को अपने शरीर को आहार देता है जो लिस्ट में लिखा है उसी अनुसार लेकर आते हैं।
शिक्षा-साधु चौके को मेडिकल के जैसे समझता है और आहार ग्रहण करता हैं।
सकंलन ब्र महावीर