आज के ही दिन चम्पापुर में जन्मे महामुनि श्री श्रेष्ठी सुदर्शन जी ( सेठ सुदर्शन ) कमलदहजी मन्दिर गुलजार बाग पटना से मोक्ष गये

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शीलधुरंधर सेठ सुदर्शन- आज के ही दिन चम्पापुर में जन्मे महामुनि श्री श्रेष्ठी सुदर्शन जी ( सेठ सुदर्शन ) कमलदहजी मन्दिर गुलजार बाग पटना से मोक्ष गये थे

रात्रि में आकाश मार्ग से जाती हुई एक व्यंतर जाति की देवी का विमान उनके ऊपर रूक जाता है आगे नहीं बढ़ता है वह व्यंतरी (अभयमती रानी का जीव) नीचे उतर कर देखती है और सुदर्शन को देखते ही क्रोध और [[अहंकार से चूर हो कहती है- अरे दुर्मुख! तूने अहंकार]] में आकर मेरी बात नहीं मानी थी और मुझे अपयश का पात्र बनाया था । देख, तेरे लिये आर्तध्यान से मारकर मैं व्यंतरी हुई हूँ। अब मैं तुझे मजा चखाऊँगी । उस समय तो किसी देव ने तेरी रक्षा की थी अब मैं देखती हूँ यहाँ तेरी रक्षा करने वाला कौन है? सुदर्शन मुनि समझ लेते हैं कि पुनः मुझ पर उपसर्ग आ चुका है । अतः वे पुनरपि उपसर्ग दूर होने तक चतुराहार का त्याग कर आत्म चिंतवन में लीन हो जाते हैं । वह व्यंतरनी विकराल डाकिनी का रूप बनाकर अपनी विक्रिया से आंधी, तूफान, पत्थर बरसाना आदि अनेक प्रकार के घोर उपद्रव शुरू कर देती है ।

इधर उपसर्ग से रंचमात्र भी विचलित न होने वाले महामुनि सुदर्शन आत्मध्यान से विशुद्धि बढाते हुए शुक्लध्यान में आरूढ हो जाते है । देखते ही देखते मोहनीय कर्म का नाश कर ज्ञानावरण , दर्शनावरण औरअन्तराय कर्मो को भी निर्मूल कर देते है । उसी समय उनके अन्दर केवलज्ञान रूपी सूर्य उदित हो जाता है । स्वर्ग में देवों के आसन कम्पायमान हो जाते है, वे अवधिज्ञान से सारा समचार विदित कर वहाँ आ जाते है । अर्धनिमिष मात्र में वहाँ गंधकुटी की रचना कर देते है । महामुनि सुदर्शन केवलज्ञान प्रगत होती ही इस पृथ्वीतल से 5000 हजार धनुष (20000 हाथ) ऊपर आकाश में अधर पहुँच जाते है । और वहाँ पर देवों द्वारा रची गई गंधकुटी के मध्य कमलासन पर अधर विराजमान हो जाते है ।

यह यक्षदेव भक्ति से गदगद हो केवली भगवान की पूजा कर अपने जीवन को धन्य समझता है । पटना शहर के राजा अपने अन्तःपुर परिवार और प्रजा के साथ आकर भगवान केवली का दर्शन करके उनकी पूजा करते है । इस अतिशय को देखकर वह वयंतरी भी वहाँ आती है और गंधकुटी के मध्य विराजमान सुदर्शन केवली के सन्मुख शांतचित होकर अपने अपराधों की क्षमा याचना करते हुए सम्यग्दर्षन ग्रहण कर लेती है । पंडिता धाय और उेवदत्ता भी वहाँ आकर अपने दुष्कृत्यों का प्रायश्चित्त करते हुए सम्यग्दर्शन ग्रहण कर लेती हैं तथा अपने योग्य व्रतों को भी धारण कर लेती है । सुदर्शन मुनि के केवलज्ञान का समाचार सुनकर चम्पापुर से मनोरमा भी अपने पुत्र सुकांत के साथ वहाँ आती है । केवली भगवान का दर्शन करके सुकांत को गृहस्थोचित शिक्षा देकर आप आर्यिका के व्रत ग्रहण कर लेती है । अन्य कितने ही भव्य जीव मुनि , आर्यिका हो जाते है । कितने ही [[श्रावक] ]- श्राविका के व्रत ग्रहण कर लेते हैं ।

सुदर्शन केवली अन्त में अघातिया कर्म को भी नष्ट कर पौष शुक्ला पंचमी के दिन निर्वाण धाम को प्राप्त कर लेते है । असंख्य देव-देवियों के साथ इन्द्र आकर सुदर्शन मुनि का निर्वाण महोत्सव मनाते है । तभी से वह पुण्यस्थल तीर्थ बन जाता है ।

मंत्र जाप्य-ॐ ह्रीं सिद्धपदप्राप्त श्रीसुदर्शनमहामुनीन्द्राय नम:।
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