पर आज टॉप कर बनी वकील, जज बनने की तैयारी ॰ वो जैनों से ही परेशान, जैन ही हुआ मेहरबान
04 अप्रैल 2024 / चैत्र कृष्ण दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
जैन साहब एक खूबसूरत नौजवान, चंचल स्वभाव, दिखने में स्मार्ट जिनका गिफ्ट, आइटम, डायरी पेस्ंिटग का छोटा सा कारोबार होता है, उनको गुप्ता जी की लड़की से प्यार हो जाता है। पांच साल अफेयर चलने के बाद दोनों शादी कर लेते हैं। अभी दाम्पत्य जीवन बाकी सब अच्छे से चलना शुरू ही हुआ था कि एक दिन लड़की को पता चलता है वो मां बनने वाली है। सभी बहुत खुश थे, उत्साहित थे, सपनों के सागर में गोते लगा रहे थे वंश चलाने के लिए नन्हा राजकुमार आना चाहिए, पर पता चला गर्भ में लड़की है। दादी को तो मानो करंट लग गया, बहु को करंट लगाया, जिससे आने वाली कोख से बाहर निकलने से पहले खत्म हो जाये। पर होनी को कुछ और मंजूर था। कोख में अनेक प्रताड़ना सहने के बाद एक प्यारी सी बिटिया ने जन्म लिया। उधर सारे घर में मातम सा छा गया। किसी अनहोनी के डर से बहु सहमी हुई थी, तभी पति गुस्से में अंदर आया और गालियां बकने लगा, पत्नी को कोसने लगे, उसको इतना प्रताड़ित किया गया कि वो अपना होश खो बैठी, जब होश में आई तो सब उसे छोड़ कर जा चुके थे।
जैसे-तैसे अपने मां-बाप को साथ लेकर घर पहुंची, फिर उसे परेशान करने का सिलसिला शुरू हो गया था, जिंदगी जहन्नुम बन चुकी थी। एक बार तो दादी ने नवजात को वॉशबेसिन में पानी की धार में उल्टा लटकाकर भी मारने की कोशिश की। मारपीट, गाली-गलौज रोज की बात हो गयी। अब बच्ची 4 साल की हो चुकी थी, उस पर भी जुल्मों की कोई कमी नहीं रखी गई, रोज का मारना-पीटना, भरी ठंड में ठंडे पानी से नहला दिया जाता, मारने की पूरी कोशिश की जा रही थी, कोई तरस नहीं किया जाता था। उस नन्ही जान पर जितना जुल्म कर सकते थे, उससे अधिक कोस रहे थे। किसी के हृदय में कोई रहम नहीं था। यहां तक कि नानी द्वारा दिए गये कपड़े खिलौने भी छीन कर ताऊ के लड़के को दे दिये जाते थे।
उसका कसूर सिर्फ इतना था कि वो एक लड़की बन के पैदा हुई थी, किन्तु जाके राखे साइंया मार सके ना कोई। आखिर में जब इतने से भी कू्रर परिवार का दिल नहीं भरा, तो उन्होंने मां-बेटी को घर से निकाल दिया, लड़की पर तो मानो कुठारघात हो गया। आखिर अब वह कहां जाये, कैसे जियेगी, क्या करेगी, किसके सामने हाथ फैलाए, एक पल में सब कुछ खत्म हो चुका था। एक बार तो मन में आया कि मर जाना ही अच्छा है, पर नन्हीं परी की जिंदगी की खातिर वह जैसे-तैसे करके एक कमरे में किराये पर रहने लगी। छोटा-मोटा काम करके गुजर-बसर करने लगी,और फिर महिला आयोग में केस डाल दिया।
हर तारीख पर बच्ची को लेकर जाना कि शायद तरस आ जाये, पर सब बेकार। अब उसकी सहन शक्ति ने जवाब दे दिया। सभी से उसको चिढ़ मचने लगी, घर सम्भाले, काम पर जाये, बच्ची भी संभाले, तारीख पर भी जाये, लोगों के ताने भी सुने। आखिर कब तक, वह अपने पति के सामने गिड़गिड़ाने लगी, सास के पैर पकड़ लिए – उसे अपने घर ले चले, पर सबने झिड़क दिया कहा कि लड़का जना होता तो हम तुझे अपने साथ रखते…। पिता ने वूमेन सेल में यहां तक कह दिया कि पैसे चाहिए, तो बेटी को कोठे पर बैठा दो कैसा बाप…। अब उसके मन में भी यह बात बैठ गई, उसे भी अपनी बेटी नन्हीं परी फूल सी बच्ची दुश्मन दिखने लगी। उसके मन यह बात घर कर गई कि उसकी इस दशा की जिम्मेदार यह बच्ची है। अब उसका हर छोटा बड़ा गुस्सा, खीज उस मासूम सी बच्ची पे निकलने लगा, वह यह भी भूल गयी उसको उसने अपनी कोख से जन्म दिया है। किस्मत तो छोड़ो भगवान को भी उस जरा सी बच्ची पर दया नहीं आयी, वह पांच साल की हो चुकी थी। अब यहां से शुरू होता है उस नन्हीं बच्ची का स्ट्रगल……
मां तो थी पर अब ना के बराबर, बच्ची बड़ी हो रही थी स्कूल जाने लगी, घर में भी किच-किच, स्कूल में भी बच्चे चिढ़ाते थे, पैसों की कमी तो थी ही। स्कूल में बिना पैसों के ना कोई एक्टिविटी, ना पिकनिक, दोस्त भी बहुत कम। ना घर पे मन लगे, ना पढ़ने में और जब इस उम्र में बच्चे खेल-कूद में सबसे आगे रहते हैं। वह डिप्रेशन में आ रही थी, स्कूल के किसी फंक्शन में मां नहीं आ पाती, तो सभी को पता चल गया कि मां-बाप साथ नहीं रहते। सबने अपने बच्चों को उसके साथ उठने-बैठने को मना कर दिया। उधर बच्ची की उम्र ही क्या थी। घर का माहौल खराब, मां उसे अपनी खुशियों के आड़े ग्रहण मानती थी, ताने मार-मार कर जीना हराम कर दिया था। मारती-पीटती भी थी, बाहर पड़ोसी दुत्कारते थे, बच्चे तो हंसते थे, पर टीचर्स का बर्ताव भी अच्छा नहीं था। पर जैसे-तैसे समय गुजरता रहा …।
अब बच्ची टीनेजर की ऐज में कदम रख चुकी थी, वह तेरह साल की हो चुकी थी। मां भी परेशान होकर छत पर उसे नग्न खड़ा कर देती। एक मां ही जैसे बेटी की दुश्मन बन गई। एक दिन खबर मिलती है कि दादा जी नहीं रहे। लड़ाई-झगड़े कितने भी हो, रिश्ते तो रिश्ते होते हैं इस समय पापा को हमारी जरूरत है, ऐसा सोच वह अपनी मां के साथ पापा के पास शोक मनाने पहुंच जाती है। गम का माहौल, कोई कुछ नहीं बोलता, वह वहां परिवार का हिस्सा बन कर रहते हैं। लगता है अब सब ठीक हो चुका, शायद इतने सालों में कड़वाहट खत्म हो चुकी है। बेटी तो परिवार के साथ रह के बहुत खुश थी, क्यों कि वह पहली बार रोज से कुछ अलग अच्छा अनुभव कर रही थी। उसकी मां उससे भी ज्यादा खुश थी उसको आभास हो रहा था, इतने सालों में अकेले रह के बहुत कुछ सहा है टूट चुकी हूं थक चुकी हूं, अब सब ठीक है। अब उसका घर परिवार वापिस मिल गया है, अंत भला तो सब भला….।
तेरहवीं के बाद सब मेहमान विदा हुए एक दम शांति छा गयी, किन्तु तूफान तो आना अभी बाकि था। यह उसके पहले की शांति थी। रात के दस बजते, उसके पहले ही तूफान की सुगबुगाहट होने लगी, घर के सभी इकट्ठा होने लगे – दादी, ताऊ, पापा, ताई जितने और भी लोग थे, सभी मिल के मां-बेटी को कमरे से बाहर निकालते हैं और उनके साथ मार-पिटाई करने लगते हैं। उनको एक बार फिर घर के बाहर निकाल फेंक दिया जाता है, मरता क्या ना करता, वापिस वही किराये का मकान…।
सात महीने बाद पता चलता है कि मां एक बार फिर पेट से है, वह जैन साहब को खबर करती है अपनाने के लिए बोलती है। कठोर दिल इस बार फिर सोचता है, चलो बेटा मिलेगा, पर होनी को कुछ और ही मंजूर था।
जन्म लेने वाला बच्चा सुन्दर सी नन्ही सी परी थी। यह देख ससुराल वालों की उम्मीद खत्म हो गयी, मां का हौंसला भी टूट गया। मकान मालिक ने मकान खाली करा लिया। सब खत्म, तीनों नानी के घर पहुंच गए। बड़ी बेटी पर मां के जुल्म बरकरार रहे, समय के साथ बढ़ते गए, कभी तो अपनी खीज और गुस्सा मिटाने के लिए वह उसे दिन भर पीटती। सिर्फ एक नानी थी, जो उसको बहुत प्यार करती थी और यथासंभव जुल्मों से भी बचा लिया करती। क्या उस लड़की का पैदा होना, उसके हाथ में था। यदि एक गुनाह था, तो गुनहगार लड़की नहीं मां-बाप थे, जिनके पापों और गुनाहों की सजा वो लड़की भुगतने पर मजबूर थी। यदि हिंदुस्तान में ऐसा कोई कानून होता, तो बेशक इस की सजा उसके मां-बाप भुगत रहे होते। लेकिन भगवान के यहां न्याय जरूर होता है, उसके यहां देर है, अंधेर नहीं…।
सब कुछ सहते हुए लड़की बड़ी होती रही, इस सबको अपनी किस्मत मान कर सोने की तरह तपती रही और उसने अपना सारा फोकस पढ़ाई पर लगा दिया। समय के साथ मां का फ्रस्ट्रेशन बढ़ता रहा और वह लड़की अपनी हर परीक्षा में अव्वल आती रही। जो सोना जितना तपता है, उतना ही निखरता है, शुद्ध बन जाता है। वह लड़की भी इक्कीस वर्ष की हो गयी और लॉ फ्सट ईयर में प्रथम आयी। उधर उसकी मां ने फ्रस्ट्रेशन में अपनी ही बेटी की कंप्लेट कर दी और आरोप लगाया कि उसकी बेटी अपनी छोटी बहन और मुझे मारती पीटती है। उसको जिप्सी में बिठा कर ले जाया गया, वहां काउंसलर को उसने जब अपनी कहानी सुनाई तो सबके आंखों में आंसू आ गये, उसको पूछा गया क्या तुम अपनी मां के खिलाफ कोई कार्रवाही करना चाहती हो, तो उसने मना कर दिया। वह अपनी मां की मानसिक हालत से वाकिफ थी।
उसको मां से कोई शिकायत नहीं थी, वह अपनी मां को बहुत प्यार करती थी। उसको शेल्टर में भेज दिया गया, वहां से उसको नारी निकेतन भेज दिया गया। उसने अपनी पढ़ाई जारी रखी। उस पर ढाई लाख का कर्जा भी हो गया। अब आगे बढ़ने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे, बहुत से लोग मिले, उसकी सहायता के बहाने शारीरिक शोषण करने की कोशिश की। अब वह परेशान थी हताश होने लगी आगे पढ़ाई करे, तो कैसे करे?
उस टाइम कोरोना पीक पर था। एक अनाथालय में उसकी मुलाकात एक जैन भाई से हुई, जो एक एनजीओ चलाते थे, जो 18 वर्ष के ऊपर उन लड़कियों की मदद करते थे, जो पढ़ना चाहती थी, कुछ करके दिखाना चाहती थी। उन भाई ने भरोसा दिलाया वह उसकी मदद करेंगे, लेकिन भरोसा करें, तो कैसे? अब तक जो भी मिला, उसने या तो झूठ बोला, धोखा दिया या उसका गलत फायदा उठाने की कोशिश की। धीरे-धीरे समय गुजरा। भाई जी ने उसकी हर संभव मदद की, उसको सिर्फ एक भाई का नहीं, एक बाप की तरह प्यार दिया और उनकी छत्र छाया में उसने ना सिर्फ अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की, बल्कि प्रथम भी आई और आज वह अकेले दम पर, जज बनने की तैयारी करते हुए सोना से कुंदन बनने की तरफ अग्रसर है।
इस बिटिया का नाम है आस्था जैन। नजफगढ़ मातृत्व होम वाले अभिनव जैन उसकी हर मदद कर रहे हैं, बाप की तरह। जहां लगभग 30-40 और बिटिया इसी तरह टूटे सपनों को वहां पूरी कर रही हैं।