आज सही को सही और गलत को गलत कहने , समझाने और बोलने वाले क्यों नहीं दिखते, आने वाला पर्युषण और मोक्ष सप्तमी का दिन यही पूछता है

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31 जुलाई 2022/ श्रावण शुक्ल तृतीया /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

कई बार कलम , चाह कर भी नहीं चला पाते। कुछ लोग कहते हैं परीक्षा की घड़ी तभी होती है, जब परीक्षा ली जाती है। उसके बिना तो 365 दिन हम अपने को होशियार बालक ही समझते हैं । इतिहास के काल चक्र को थोड़ा पीछे घूमाते हैं । 20 वे तीर्थंकर श्री मुनीसुव्रतनाथ जी के काल में चलते हैं । सीता जी का हरण रावण कर लेता है । हनुमान जी द्वारा खोज के बाद श्रीराम जी लंका के ऊपर चढ़ाई करने के लिए रामसेतु बनाकर लंका में पहुंच जाते हैं और फिर दोनों ओर से आर-पार की लड़ाई होने लगती है ।

रावण अपने पुत्र से कहते हैं जाओ जाकर युद्ध करो और जीत के आओ। तब पुत्र अपने पिता से कहता है कि वह नारायण हैं, उनसे मैं क्या लडूंगा। अपने पिता को बताता है कि गलती आप कर रहे हो, उस गलती के लिए क्षमा मांग लीजिए। सब लड़ाई खत्म हो जाएगी। पिता को बेटा अपना कर्तव्य याद दिलाता है , बोध ज्ञान कराता है । उसने पिता से कहा था, समझाया भी, पिता के आदेश को टालता नहीं, पर अपनी तरफ से हर संभव प्रयास करता है ।

यह तब की घटना थी, आज याद आ गई क्योंकि आज भी कुछ ऐसा ही लगता है । आज समाज में अधिकांश बार , पिता बेटे को उसकी गलती जगजाहिर होने पर अपनी गोद में छुपा के रखता है । ऐसा हो रहा है, बेटा गलती करके आता है बाहर, तो कदाचित अपने बेटे को प्रायश्चित देने के, उसे समझाने के , उसकी गलती पर ही पर्दा डालने लगता है । ऐसा हम देखते आ रहे हैं, पर अब तो ऐसा भी होने लगा है कि बेटे जो अपने पिता से बहुत आगे निकल जाते हैं। अपने कर्मों को ऐसे खत्म करते हैं, रास्ते की सीढ़ियां चढ़ते हैं, कि पिता की सीढ़ियां भी उनके सामने थोड़ी पीछे रह जाती है। ऐसे में जब कोई गलती, फिर इस काल में दिखती है, तब बेटे क्यों मौन हो जाते हैं। बेटे अपने पिता को धर्म क्यों याद नहीं दिलाते। आज कई बेटे संस्कारित होकर , वह काम कर रहे हैं, जिसके लिए पूरा समाज उनका धन्यवाद अर्पित करें , कितनी बार करें, वह कम है। पर जब अपने घर में अपने पिता तुल्य को समझाने की बात आती है , सही रास्ते पर पुनः दौड़ने की बात आती है, तो वह अपने कदम उसी तरह, उसी शक्ति से , उसी सामर्थ्य से , क्यों नहीं बढ़ाते। आज तो यह भी है बड़े-बड़े अन्य लोग भी चुप रहते हैं । मौन रखते हैं।

बड़ी अजब गजब की बात है । ना साथी संत कुछ कह पाते हैं, ना विद्वान कुछ बोल पाते हैं, ना किसी की कलम की स्याही रंग ले पाती है , ना किसी की आवाज मुख से निकलती है। कहते हैं कहीं ना कहीं, कोई बल चलता है और बल के नीचे सब कुछ दबा दिया जाता है। जैसे एक बलवान पहलवान किसी कमजोर व्यक्ति को दबा दे। इस रास्ते पर न बल चलता है ना चलता है यह तो धर्म का वह रास्ता है , जहां ना धन का वजन चलता है, बस कर्म का खेल चलता है । और कर्म का ऐसा खेल चलता है , इस भव नहीं , कई भवो तक यूं ही, कुछ को उठा देता है या नीचे भी गिरा देता है ।

मंथन का समय है चिंतन का समय है। समाज के हित में , बहुत कुछ करना होगा । हमें अपनी बगिया के हर फूल को खिलखिलाते रखना होगा। जिस माली ने फूल उगाए हैं , अगर माली कुछ गलत करता है , तो उन फूलों का भी हक बनता है कि वह माली को बताएं, आज तूने गलत किया है। अब यह गलती ना करना , इस गलती का सबके सामने क्षमा मांग लेना, क्योंकि क्षमा वह अस्त्र है , वह शस्त्र है, जिसको लेकर सबसे आगे चलने वाले हमारे 23वें तीर्थंकर पारस प्रभु की वह मोक्ष सप्तमी भी , हमारे निकट आ रही है , जिसने उत्तम क्षमा की उत्तमता को सबसे ज्यादा मुखरित किया। 10 भव से उनकी यह क्षमा किसी भी रूप में, किसी भी हथियार के सामने हल्की नहीं पड़ी, तो फिर आज ऐसी बातों पर क्यों समाज चुप हो जाता है ।

आज गलती को, क्षमा को स्वीकार करना, क्यों सामने नहीं लाया जाता क्या सिर्फ आज क्षमा दूसरे को सिखाने समझाने तक सीमित रह गई है। गलती पर क्षमा को स्वीकार करना और बड़प्पन बढ़ा देता है । पर आज सच को छुपाना और झूठ को दिखाना , क्या पंचम काल के 2548 वर्ष बाद , यही मुखौटा सामने रह गया है

मैं तो सिर्फ उनसे विनम्रता से कहना चाहता हूं , जो बेटे ऐसे लायक बने , जिन्होंने आज पूरे समाज का मस्तक ऊंचा कर रखा है , उन्हीं से अपील करता हूं । और उन सभी वंदनीय मालियों से भी, जिन्होंने अपनी-अपनी बगिया में खिला रखे हैं बहुत से ऐसे सुगंधित फूल , उनको भी ऐसे समय में सही दिशा तो बतानी चाहिए।

कलम रूपी हथियार रखने वालों से भी, क्यों उनकी कलम में स्याही सूख जाती है या फिर उन लोगों से भी, जो कहते तो अपने को शास्त्रों के ज्ञाता हैं, पर ऐसे समय में उनके शास्त्र की आवाज क्यों बंद हो जाती है । क्यों मौन है सब। क्या हम सत्य को सही समय पर, उस सत्य को मुखरित नहीं कर सकते क्या, गलती को स्वीकार करना आज मुश्किल हो गया है।
आने वाला पर्युषण शायद हमसे यही पूछता है कि कहां गई वह उत्तम क्षमा , मार्दव , सत्य, ब्रह्मचर्य, क्या पंचम काल में यह बेमानी हो रहे हैं या फिर उनको अब अलग रूप से परिभाषित किया जाएगा। समझने वाले समझ गए, जो ना समझे वो अनाड़ी है । इस चलते पंचम काल में हर कोई समझे वो खिलाड़ी है।

चैनल महालक्ष्मी की ओर से एक चिंतन जो समय पर बोलने का साहस नहीं कर पाते