शब्दों को हम संवारने का प्रयास करें, चेहरे को नहीं, क्योंकि चेहरे को हम भूल जाते हैं, शब्दों को नहीं- आ. सौभाग्य सागरजी

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महानुभाव, एक जंगल में आदमी जा रहा था। वह वहां से समुद्र के तट पर पहुंचा तो उसने उसका पानी पिया तो समुद्र से कहा – तुममें बहुत गहराई, लंबाई है लेकिन तुम्हारे अंदर खारा पानी है। और आगे चला तो उसे एक फूल का पौधा मिला। फूल को तोड़ा तो उसे कांटा चुब गया, उसने कहा – तुम्हारे अंदर खुशबू तो बहुत है, लेकिन कांटे भी बहुत हैं। फिर वह और आगे चला तो रास्ते में एक पेड़ मिला जिस पर फल लगे हुए थे।

उसने कहा पेड़ तुम्हारे फल तो बहुत अच्छे हैं, लेकिन जो कचड़ा, पत्ती आदि गिरती हैं, वह अच्छा नहीं। फिर उसे कोयल मिली, उसे उसने कहा तुम बहुत सुंदर गाती हो, लेकिन शरीर काला है। और आगे चला तो उसे एक संत मिले, इससे पहले वह उन्हें कुछ कहता, संत बोला – हे मानव तुम्हारे में बहुत सारी अच्छाई है, तुम्हारा चेहरा अच्छा है, शरीर अच्छा है, कपड़े अच्छा है, सबकुछ तुम्हारे पास अच्छा ही अच्छा है लेकिन एक दुुर्गुण है, वह है तुमको दूसरों के अंदर बुराई खोजने की आदत है। वह इंसान और कोई नहीं, हम सभी हैं जिन्हें दूसरे के अंदर की बुराई खोजने की आदत है। स्वाध्याय के बाद हम रोज पढ़ते हैं कि शब्दों को हम संवारने का प्रयास करें, चेहरे को नहीं, क्योंकि चेहरे को हम भूल जाते हैं, शब्दों को नहीं।

तो हम सबको यही समझना है कि यह दुर्गुण हमारे अंदर है, अगर है तो हमें उसे हटाना होगा। दाल – रोटी जल जाती है तो बदबू आती है, लेकिन यदि इंसान, इंसान से जलता है तो बदबू ही नहीं आती बल्कि उसका पूरा जीवन बदबूमय हो जाता है। आज इंसान के अंदर ज्वलनशीलता, दुर्गुण देखने की भावना बहुत बढ़ गई है। अरे, कौन किसी को क्या देता है, कौन किसी के क्या लेता है, दो शब्द प्रेम के बोलो, आपकी जेब से क्या जाता है? एक शब्द है आप आये हो तो खाना खिलाना पड़ेगा और एक शब्द है कि आपको बिना खाये जाने नहीं दूंगा।

जो अज्ञानी है, उसे संत, महापुरुष सिखा सकते हैं, लेकिन जो बनावटी नाटक कर रहा है, उसे कोई नहीं सिखा सकता। सोने वाले को उठाया जा सकता है, लेकिन जो सोने का नाटक कर रहा है, उसे कौन उठा सकता है। भूखे को भोजन करा सकते हो, जिसका पेट भरा है, उसे भोजन करा नहीं सकते। इंसान के अंदर सबकुछ अच्छाई है, लेकिन वह दूसरों के अंदर कमियां खोजता है, दूसरों की बुराई करता है, हमें अपने इस दुर्गुण को दूर करना चाहिये।

(प्रवचन स्थल : अहिंसा स्थल, महारौली)