र्ऐतिहासिक जैन शिल्प : अजनाभ वर्ष के प्रवर्तक महाराजा नाभिराय
5 हजार वर्ष प्राचीन सिन्धु घाटी की सभ्यता की खुदाई में निकली मूर्ति का धड़। इसे भारत के सभी बड़े पुरातत्त्ववेत्ताओं ने महाराजा नाभिराय की मूर्ति माना है, जो कि ऋषभदेव के पिता थे। डॉ. रामप्रसाद चंदा, प्रो. प्राणनाथ विद्यालंकार, डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी आदि विद्वानों ने इसे प्रमाणित किया है। प्राचीन भारत का नाम इन्हीं के नाम से अजनाभ वर्ष पड़ा।
[2]दुर्लभ सील।।
५ हजार वर्ष प्राचीन सिन्धु घाटी की सभ्यता की खुदाई से सील, जिसे सर जॉन मार्शल ने अनुसंधान कर बताया कि इस सील में महायोगी ऋषभदेव को चक्रवर्ती भरत प्रणाम कर रहे हैं एवं नीचे करबद्ध मुद्रा में उनके सातों मंत्रीगण खड़े हैं। प्रो. रामप्रसाद चंदा, डॉ. एम. एल. शर्मा आदि विद्वानों ने भी माना है।
[3]तीर्थंकर मूर्ति।।
ईसा से कई शताब्दियों पूर्व की लोहानीपुर (पटना, बिहार) उत्खनन से प्राप्त मूर्ति का धड़ जिसे पुरातत्त्व के मूर्धन्य विद्वान् डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल, डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल आदि अनेक विद्वानों ने प्रमाणित करते हुए बौद्ध तथा ब्राह्मण धर्म सम्बन्धी मूर्तिर्यों की अपेक्षा प्राचीन माना है।
– आर्यिका चंदनामती
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