अब #सिद्धवरकूट से 27 पिच्छी वाले बड़े संघ को आचार्य संग क्यों करना पड़ा मजबूरन अचानक विहार ,कौन है दोषी, बनाए बहाने तीन

0
2316

7 मई 2022/ बैसाख शुक्ल षष्ठी /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/

बहुत ही अजीब हो गई है हमारे समाज की गतिविधियां । एक तरफ किसी संत पर दुराचार का आरोप लगता है, तो वहां का समाज उसको दबाने, छिपाने और जो पीड़ित होता है, उसी को बाहर निकालने के लिए तैयार हो जाता है। सिर्फ इसलिए कि अब उसे पर्दे के पीछे लाकर पुनः दीक्षा के रास्ते को साफ कर दिया जाए । दाग कितने भी हो , हम उनको हटाना नहीं चाहते । हम दागों के साथ जैसे जीना सीखना चाहते हैं। दूसरी तरफ वही समाज , जब एक संत को बेवजह मजबूरन विहार करना पड़ जाता है , तो समाज चुप्पी डाल लेता है । बस कुछ इसी तरीके से हमारे समाज के दो चेहरे सामने आते हैं। 5 मई को मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के साढ़े तीन करोड़ मुनिराजों की सिद्ध क्षेत्र के सिद्धवरकूट में जो हुआ , वह किसी से छिपा नहीं है। आचार्य विराग सागर जी के शिष्य , आचार्य विभव सागर जी, जो वहां पर 27 पिच्छियों के साथ पिछले ग्यारह 12 दिन से विराजमान थे, जिन की आहार व्यवस्था , सनावद , जो वहां से 15 किलोमीटर पर है , उसके द्वारा चलाई जा रही थी। पर अचानक आचार्य संघ को एक, दो, तीन बातें कहकर परोक्ष रूप में , संकेत कर दिया जाता है कि अब आप बिहार कर ले ।

यह सीधा नहीं , एक मजबूरन फैसला लेना पड़ता है, उस संघ को, जिस के आत्मसम्मान पर गहरा आघात कर दिया जाता है। तीन बातें कहकर, उनको उस स्थिति में ला दिया जाता है कि वह तत्काल मजबूरन विहार करने को तैयार हो जाए । कह दिया जाता है कि वह निर्माल्य द्रव्य का आहार में उपयोग कर रहे हैं । बड़ी गहरी चोट लग जाएगी , जो यह सुन लेगा। दूसरी बात यह कह दी जाती है कि आप तीन-चार दिन के लिए आए थे , अब 11- 12 दिन हो गए हैं और तीसरी चोट यह कर दी जाती है कि जिस बांध के ऊपर से लोग, आहार के लिए आपके पास आते हैं , अब उस बांध से आने की अनुमति तत्काल समय से बंद कर दी गई है ।

क्या कहना चाहते हैं पदाधिकारी और क्यों चुप हो गया समाज। अगले ही दिन मजबूरन उसे पूरे संघ को, जिसमें अधिकांश वृद्ध है और ऊपर से भीषण गर्मी, मजबूरन अचानक विहार को मजबूर हो जाता है । हमारी चुप्पी किस ओर संकेत दे रही है ।यहां संत का नाम आवश्यक नहीं, यहां किसी संत को जोड़ना आवश्यक नहीं , आहार और विहार हम श्रावक ओं का कर्तव्य है परम कर्तव्य है।

क्या है पूरी स्थिति, क्यों किया, किसने किया, कैसे किया, जहां पर पहले भी एक आर्यिका को विहार के लिए मजबूर कर दिया था और चैनल महालक्ष्मी ने उस पर आवाज उठाई थी । अब फिर, उसी आवाज को दोबारा उठाना , मजबूरी बन गया है। देखिएगा, पूरी स्थिति और वह कड़वा सच ,उन्हें आवाजों से , जिन्होंने इस को देखा और अब उन्हीं के द्वारा, उस कथनी की सच्चाई ।जानिए , हमारा समाज क्या कर्तव्यविहीन हो रहा है , दो चेहरे दिखते हैं सामने । एक गलत को छुपाने का , दूसरी तरफ सही सही के साथ नहीं खड़े होने का। रविवार 8 मई को प्रातः 8:00 बजे के एपिसोड में पूरी जानकारी जानिए कि क्यों आचार्य को पूरे संघ के साथ मजबूरन करना पड़ा विहार ।दोषी कौन।

अब सिद्धवरकूट से 27 पिच्छी वाले आचार्य संघ को करना पड़ा जबरन विहार बनाए बहाने तीन समाज शर्मसार गमगीन
कह दिया बांध से एंट्री बंद हो गई , कह दिया अब जाने का वक्त आ गया, और कह दिया आहार में आप निर्मालय द्रव्य का इस्तेमाल कर रहे हो । संतो के आत्मसम्मान को पहुंचाई ठेस, आजकल हमारे पदाधिकारी के अंदर कौन सा है भेष। जागना होगा समाज को पंथवाद संतवाद से निकलना होगा बाहर और करना होगा हर संत का सम्मान,यह नहीं है हमारी सही भक्तों की पहचान
देखना ना भूलें रविवार 8 मई को प्रातः 8:00 बजे के सोशल मीडिया पर जैन समाज के सबसे लोकप्रिय न्यूज़ चैनल, चैनल महालक्ष्मी पर

सिद्धवरकुट कमेटी द्वारा दिगंबर संत एवम् संघ के अपमान से दिगंबर संत समाज में आक्रोश है एवम् संत समाज ने मालवा निमाड़ में चातुर्मास न करने का मन बनाया जो कि इस क्षेत्र के लिए धर्म की बहुत हानि का प्रतीक है।

इन दिनों सिद्ध क्षेत्र श्री सिद्धवरकूट की घटना से मन बहुत दुःखी है क्योंकि यह विगत 2 माह के भीतर दूसरी धटना है
पिछली घटना आर्यिका श्री सुनिधि मति जी के संघ के प्रति मार्च 2022 में हुई उन्हें भी एक माह रूकना था किंतु सिद्धवरकूट के दर्शन कर बिना आहार के विहार कर दिया
सिद्धवरकूट की दूसरी घटना आचार्य श्री विभव सागर जी संघ के साथ हुई उन्हें अन्य नगर ग्राम में जाकर कमेटी आमंत्रित करती है फिर उनसे कहा जाता है आप कब तक रुकोगे जबकि उनकी आहार की व्यवस्था सनावद, बड़वाह, बड़वानी समाज, अन्य नगरों की समाज तथा संघ के भैया दीदी करते है

श्रावकों से प्राप्त आहार दान की राशि को निर्माल्य बताने का धृणित कार्य तक किया जाता है
45 डिग्री से अधिक तापमान में संघ विहार कर देते है
जिसमे णमोकार मंत्र के तृतीय परमेष्ठी आचार्य परमेष्ठी तथा पाँचवे साधु परमेष्ठी की उपेक्षा अवहेलना अपमान हुआ है

यह घटनाएं प्रतीकात्मक है यह क्षेत्रो मंदिरों के ट्रस्टियों की पद लोलुपता माला माइक तथा निजी स्वार्थ की भूख है सिद्ध क्षेत्रो को पिकनिक स्थल बना दिया है
साधुओ को ज्ञान देने वाले आचार संहिता बनाने वाले तथा कथित विद्वानों का मौन आश्चर्यजनक है खुद तो संयम धारण नही करते है दुसरो को सीख देते है संत वाद पंथ वाद में साधुओ की उपेक्षा बहुत ही निंदनीय है