सिद्ध मार्ग पर सिद्धम! 10 वर्ष की उम्र में सांसारिक जीवन से त्याग,, कठिन साधु जीवन प्रतिज्ञा, हमेशा पैदल चलेंगे- वाहन नहीं, रात्रि में पानी निषेध

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17 मई 2022/ जयेष्ठ कृष्णा दौज /चैनल महालक्ष्मीऔर सांध्य महालक्ष्मी/
सिद्ध मार्ग पर सिद्धम! 10 वर्ष की उम्र में सांसारिक जीवन से त्याग,3 साल पहले शुरू कर दी थी तपस्या,अब कहलाएंगे बालमुनि चंद्रसागर। साफा बांधे, गहनों से लदे सिद्धम कुमार ने सांसारिक जीवन के आखिरी क्षणों में किया नृत्य, फिर वैराग्य के मार्ग पर चल पड़े!

ह्रींकारगिरि स्थित जैन तीर्थ श्वेतांबर जैन मंदिर में झाबुआ के 10 वर्षीय बाल मुमुक्षु सिद्धम जैन का दीक्षा समारोह रविवार को हुआ। शेरवानी पहने, साफा बांधे, गहनों से लदे मुमुक्षु सिद्धम कुमार जब एक संन्यासी की वेशभूषा में सबके सामने आए तो उनके गुरु आचार्य ने उन्हें गले से लगाते हुए वैराग्य मार्ग पर उनका स्वागत किया।
सांसारिक जीवन के अपने आखिरी क्षणों में 10 वर्षीय सिद्धम जैन ने अपने माता-पिता और समस्त परिवारजनों के कंधे पर चढ़कर रजोहरण प्राप्त करने पर खुशी व्यक्त करते हुए नृत्य किया।

सिद्धम के गुरु आनंदचंद्र सागर ने बताया सिद्धम ने पिछले तीन साल से वैराग्य की राह पर चलने का अभ्यास शुरू कर दिया था। लंबे विहार पर साथ चलना, खाने से मोह खत्म करना और बिना बिजली व पंखे के रहने का अभ्यास 10 वर्षीय दीक्षार्थी ने तीन साल पहले से ही शुरू कर दिया था।

रविवार को 6 घंटे तक दीक्षा समारोह के पश्चात सिद्धम को आचार्य जिनचंद्रसागर सूरीश्वर महाराज ने बाल मुनिराज चंद्रसागर महाराज का नाम दिया। समारोह सुबह 8 बजे शुरू हुआ, जहां सबसे पहले सिद्धम कुमार ने 1 घंटे तक प्रतिक्रमण किया और अपने अब तक के जीवन में किए गए पाप कर्मों के लिए क्षमा मांगी। इसके बाद मंदिर में स्नात्र पूजा की गई और सिद्धम की घर की डेली छुड़ाई गई। इसके बाद वर्षी दान यात्रा निकाली गई, जिसमें एक बार फिर सिद्धम ने श्रद्धालुओं के बीच सांसारिक वस्तुएं लुटाईं। इसके बाद 1 घंटे तक दीक्षा का क्रम चला।

साधु के कपड़े पहनकर जब सिद्धम दीक्षा पंडाल में पहुंचे तो धर्मालु उनके दर्शन के लिए लालायित हो गए। इसके बाद आचार्यश्री ने सिद्धम को प्रतिज्ञा ग्रहण करवाई। इसमें उन्हें यह प्रतिज्ञा दिलाई कि वे कठिन साधु जीवन जीएंगे, हमेशा पैदल चलेंगे, रात्रि में पानी का निषेध रहेगा, किसी वाहन का उपयोग नहीं करेंगे। इसके बाद उनका आचार्य जिनचंद्रसागर सूरीश्वर महाराज एवं आनंदचंद्रसागर द्वारा नामकरण किया गया।

आचार्य जिनचंद्रसागर सूरीश्वर महाराज से दीक्षा प्राप्त कर सिद्धम से चंद्रसागर महाराज बने 10 वर्षीय बालक की पहली गोचरी हुई और साधु जीवन की पहली रात ह्रींकारगिरि तीर्थ स्थल पर बिताई। सुबह उन्होंने प्रतिक्रमण, मंत्र जाप और मंदिर दर्शन किया। इसके बाद ह्रींकारगिरि तीर्थ से 9 किमी की पदयात्रा पौने 2 घंटे में कर पीपली बाजार उपाश्रय पहुंचे। उन्होंने प्रथम गोचरी में उनकी माता द्वारा लाए गए रसगुल्ले ग्रहण किए। शाम को चंद्रसागर महाराज अपने आचार्यों और अन्य साधु भगवंत के साथ विहार कर सांवेर रोड पर रात्रि विश्राम के लिए पहुंचे। उन्होंने उपदेश भी दिया।