महज शास्त्रों की सफाई, वेस्टन चढ़ाने या सरस्वती पूजा ही करी, तो यह पर्व पर गजस्नान से ज्यादा कुछ नहीं होगा,क्या है श्रुत, और कितना श्रुत संरक्षित है आज

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3 जून 2022/ जयेष्ठ शुक्ल चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

ज्येष्ठ शुक्ल की पंचमी, जो आ रही है 4 जून को। एक बार फिर कुछ मंदिरों में, शास्त्रों की, अल्मारियों की सफाई होगी। कुछ शास्त्रों को बाहर निकालकर, कवर चढ़ाकर वापस रख, अल्मारियों को बंद कर दिया जायेगा। कुछ मंदिरों में इस पर्व पर, सरस्वती पूजन आदि किया जायेगा, कुछ में षट्खंडागम या अन्य शास्त्रों के साथ शोभा यात्रा निकाली जायेगी और इस तरह से श्रुत पंचमी का पर्व मना लिया जायेगा। तो क्या, श्रुत पंचमी का पर्व, बस 365 दिनों बाद आकर क्या यही कहता है? शायद नहीं।

आइये सांध्य महालक्ष्मी द्वारा शास्त्रीय नहीं, बहुत सरल भाषा में समझते हैं, यह श्रुत, ज्ञान की दूसरे रूप श्रुत ज्ञान से, नहीं जुड़ा बल्कि तीर्थंकर वाणी से जुड़ा है। श्रुत यानि तीर्थंकर की वाणी, जो सरस्वती के रूप में, जिनवाणी के रूप में आज हमारे पास है। अरे भाई, इसे नित्य नियम पूजा या पूजन पाठ प्रदीप या प्रवीण भी मत समझिये। अनेक मंदिरों में नित्य पूजन पाठ पुस्तक तक ही श्रुतवाणी को समझ लिया जाता है। श्रुत वह, जो ओंकार रूपी ध्वनि से 18 प्रमुख, 700 लघु भाषाओं से समोशरणों में गणधरों द्वारा मागध जाति के देवों के माध्यम से पहुंचाया गया। श्रुत, वह विशेष ज्ञान कितना है हमारे पास? क्या उतना ही, जितना तीर्थंकरों के केवल ज्ञान से झलकता है? क्या उससे ज्यादा है आज? या फिर उससे कुछ कम है आज है उपलब्ध?

आइये सांध्य महालक्ष्मी इन जिज्ञासाओं को पहले शांत करता है, ध्यान रखें कि यह अवसर्पिणी काल है, धीरे-धीरे हमारे ज्ञान का, आयु का, कद का, शक्ति का, सब का ह्रास होता जाता है, इसलिये तार्थंकरों द्वारा दिये गये, ओंकारमय ध्वनि से रूपांतरित ज्ञान से, आज कम उपलब्ध है, पर कितना कम? 5 फीसदी, 10 फीसदी, 25 फीसदी, 50 फीसदी, जी नहीं, 99 फीसदी से भी बहुत कम। और चौंकिये मत, यह हकीकत है।

आज आपको बताते है कि केवल ज्ञान की प्राप्ति में जितने ज्ञान तीर्थंकर के अंतस में झलकता है, उसका असंख्यात भाग ही ओंकारमय वाणी में झलकता है। और उसका असंख्यातवा भाग ही गणधर स्वामी झेल पाते थे। उसका भी असंख्यात भाग केवलियों द्वारा द्वादशांग वाणी में गूंथा गया। तब यह लिखा नहीं गया। एक से दूसरे को सुनाया जाता, स्मरण किया जाता, पर अवसर्पिणी काल से इसका ह्रास होता गया। यानि इन्द्रभूति गौतम गणधर ने जो तीर्थंकर महावीर स्वामी से ग्रहण किया, उनसे सुधर्माचार्य ने, उनसे अंतिम केवली जम्बू स्वामी ने ग्रहण किया। तीर्थंकर महावीर स्वामी के निर्वाण, यानि आज से 2548 वर्ष पहले उनका काल 62 वर्ष तक। उसके अगले 100 वर्ष में पांच श्रुत केवली यानि पूर्ण द्वांदशांग के ज्ञाता आचार्य विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्धन और भद्रबाहु हुये। फिर ज्ञान का ह्रास और अगले 183 वर्षों में ग्यारह अंग और दस पूर्वों के वेत्ता, ग्यारह आचार्य विशाखा, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, घÞृतिसेन, विजय, बुद्धिल, गंगदेव और धर्मसेन हुए। ज्ञान कम होता गया और फिर अगले 220 वर्षों में ग्यारह अंगों के धारक पांच आचार्य नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु, ध्रुवसेन और कंस हुए।

ज्ञान कम होता गया और अब द्वादशांग का मात्र एक आचारांग के धारी चार आचार्य सुभद्र, यशोभद्र, यशोबाहु और लोहाचार्य अगले 118 वर्ष में हुये, यानि तीर्थंकर महावीर स्वामी के बाद, मोटे तौर पर काल गणना (62+100+183+220+118)=683 वर्षों में ज्ञान का इतना ह्रास हुआ कि उसके पश्चात अंग और पूर्ववेत्ताओं की परम्परा समाप्त हो गई।
और तब सभी अंगों और पूर्वों के एकदेश का ज्ञान आचार्य परम्परा से धरसेन आचार्य को प्राप्त हुआ। नरिसंघ पट्टावली के अनुसार धरसेनाचार्य का काल वीर निर्वाण से 614 साल बाद माना जाता है।

आचार्य धरसेन आष्टांग महानिमित्त के ज्ञाता थे, जिस तरह से दीपक से दीपक जलाने की परम्परा चालू रहती है, उसी प्रकार आचार्य धरसेन तक तीर्थंकर महावीर स्वामी की देशना आंशिक रूप में पूर्ववत धारा प्रवाह रूप से चलती रही। उनके द्वारा श्रुत को वाणी से लेखन में बदलने की शुरुआत हुई, आचार्य पुष्पदंत भूतबलि के द्वारा। पर कितना भाग श्रुत का? देख लिया आपने, उपरोक्त से शायद एक फीसदी का भी सौवा भाग। कैसे लिखा? अलग पढ़ेंगे। और फिर मुगल आताताईयों के द्वारा हमारे शास्त्रों को ढूंढ कर बाहर निकाल कर, जगह-जगह उनको जलाया गया, और जानते हैं आप, उन शास्त्रों की होली जगह-जगह 6 माह तक जलती रही

तो अब सोच लीजिये, आज कितना बची है श्रुत वाणी? उसका भी स्वाध्याय नहीं करते, रोजाना थोड़ा पढ़िये, उसमें से कुछ जीवन में उतारिये, तभी हमारा श्रुत पंचमी को मनाना सार्थक होगा। महज शास्त्रों की सफाई, वेस्टन चढ़ाने या सरस्वती पूजा ही करी, तो यह पर्व पर गजस्नान से ज्यादा कुछ नहीं होगा।