ताडपत्र पर रचित इस ग्रंथ की रचना अंकलेश्वर में ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को पूर्ण हुई, तभी से श्रुताराधना का महापर्व है श्रुत पंचमी

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3 जून 2022/ जयेष्ठ शुक्ल चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

जेष्ठ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन दिगंबर जैन परंपरा के अनुसार ज्ञान आराधना का महान श्रुत पंचमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन दिगंबर जैन आचार्य धरसेन के शिष्य आचार्य पुष्पदंत एवं आचार्य भूतबलि ने षट्खण्डागम ग्रंथ की रचना की थी । इस दिन दिगंबर जैन समाज जिनवाणी माता की पूजा- अर्चना कर भव्यता के साथ इस पर्व को मनाते हैं।

वीर निर्वाण संवत 614 में आचार्य धरसेन गिरनार पर्वत के उर्जयंत गिरि की चंद्र गुफा में तपस्या में रत थे। जब उन्हें वृद्धावस्था के कारण अपने अल्प आयु का बोध हुआ तो उन्हें श्रुत विच्छेद का भय सताने लगा। अतः उन्होंने महाराष्ट्र प्रांत की महिमा नगरी में एकत्रित मुनि संघ के साधु सम्मेलन में आचार्य महासेन को पत्र भेजकर अपनी चिंता से अवगत कराया और दो योग्य मुनियों को उनके पास भेजने का अनुरोध किया। आचार्य महासेन ने अपने दो पटु शिष्य पुष्पदंत और भूतबलि को गिरनार भेज दिया। दोनों शिष्य विनय शील तथा समस्त कलाओं में पारंगत थे। जब वे दोनों मुनि गिरनार की ओर विहार कर रहे थे तब धरसेनाचार्य ने एक सपना देखा जिसके अनुसार दो वृषभ(बैल) आकर उन्हें विनय पूर्वक वंदन कर रहे थे।

धरसेन आचार्य ने अपने ज्ञान से स्वप्न का रहस्य जान लिया कि दोनों मुनि विनय वान ,ज्ञानवान एवं धर्मधुरंधर हैं । अनायास ही उनके मुखारविन्द से जयदु सुद देवदा अर्थात् श्रुत की जय हो शब्द निकल पड़े। दूसरे दिन दोनों मुनिराज धरसेन आचार्य के समक्ष पहुंचे और विनय पूर्वक उनकी वंदना की। आचार्य धरसेन ने दोनों की परीक्षा हेतु एक- एक मंत्र सिद्ध करने को दिया। एक को दिए गए मंत्र में एक मात्रा कम तथा दूसरे को दिए गए मंत्र में एक मात्रा अधिक थी।

दोनों शिष्य अपने-अपने मंत्रों को सिद्ध करने लगे । जब उन्हें सिद्ध करने में कुछ विघ्न की अनुभूति हुई तो उन्होंने व्याकरण शास्त्र के अनुसार मात्राएं ठीक कर मंत्र सिद्ध कर लिया। परीक्षा में सफल होने पर आचार्य धरसेन ने उन्हें सैद्धांतिक देशना प्रदान की । यह श्रुत अभ्यास आषाढ़ शुक्ल एकादशी को समाप्त हुआ। आचार्य धरसेन ने अपना अंत समय निकट जानकर दोनों शिष्यों को विहार करने का आदेश दिया ताकि वे उनकी वैयावृत्ति में समय न गवांकर श्रुत रचना कर सकें।

दोनों मुनियों ने गुरुआज्ञा से गिरनार जी से प्रस्थान किया और अंकलेश्वर में चातुर्मास स्थापना की।आचार्य पुष्पदंत और भूतबलि ने 6 हजार श्लोक प्रमाण जीवस्थान, क्षुद्रकबंध, बंधस्वामित्व,वेदना खण्ड,वर्गणाखण्ड और महाबंध इन छह खण्डों को लिपिबद्ध किया जो षट्खण्डागम के नाम से विख्यात हुआ। ताडपत्र पर रचित इस ग्रंथ की रचना अंकलेश्वर में सन् 75 ई. में ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को पूर्ण हुई। तभी से यह दिन प्राकृत दिवस के रूप में श्रुतपंचमी के नाम से मनाया जाने लगा।

– डा.अखिल बंसल