श्रुत पंचमी मनाने की उत्तम विधि : जिनवाणी को व्यापक स्तर पर विश्व में पहुँचाने का उद्यम भी अवश्य करना चाहिए:#ShrutPanchami

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श्रुत पंचमी मनाने की विधि वर्तमान में हमारी समाज में सामान्यतया कुछ ऐसी प्रचलित है कि आज के दिन हम एक ग्रन्थ को वेस्टन में बांधते हैं, सजाते हैं और उसे वेदी में विराजमान करके उसकी पूजा करते हैं, उसके आगे अष्ट द्रव्य चढ़ाते हैं | इसके बाद उसे पुनः किसी पालकी में विराजमान करते हैं और उसका भव्य जुलूस निकालते हैं और अंत में पुनः उसे मन्दिर में विराजमान कर देते हैं |

मैं यह नहीं कहना चाहता हूँ कि यह सब गलत है | इसका भी अपना महत्त्व है | परन्तु मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह पर्याप्त नहीं है, हमें इससे आगे भी बढ़ना चाहिए | आज के दिन हमें स्व-पर-हित-हेतु कुछ और भी ठोस एवं अति आवश्यक कार्य करने का उद्यम करना चाहिए | जैसे कि आज हमें स्वयं किसी मूल आगम ग्रन्थ का विशुद्ध आत्महित की भावना से स्वाध्याय करना चाहिए | देखा जाता है कि लोग सारा उत्सव मना लेते हैं, ग्रन्थ की पूजा आदि भी कर लेते हैं, पर उन्हें खोलकर देखते तक नहीं |

अरे भाई, जिनवाणी को पढ़ना ही उसकी सच्ची पूजा है | इसी प्रकार आज के दिन हमें जिनवाणी को व्यापक स्तर पर विश्व में पहुँचाने का उद्यम भी अवश्य करना चाहिए | जैन ग्रन्थ ज्ञान-विज्ञान के भण्डार है, किन्तु लोगों को उनका पता ही नहीं है | आज के दिन हमें जैन साहित्य को जैनेतर विद्वानों, शोधार्थियों, वैज्ञानिकों, राजनेताओं आदि तक भी पहुँचाने का कोई-न-कोई उद्यम अवश्य करना चाहिए | यही श्रुत पंचमी मनाने की उत्तम विधि है |

-प्रो. वीरसागर जैन