6 सितम्बर 2022/ भाद्रपद शुक्ल एकादशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
श्री महावीर जी दिगम्बर जैन धर्मावलंबियों की आस्था का प्रमुख केंद्र (मन्दिर) है जो राजस्थान के श्री महावीर जी नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर संपूर्ण भारत में जैन धर्म के पवित्र स्थानों में से एक है। इसको ‘टीले वाले बाबा’ के रूप में भी जाना जाता है। गंभीर नदी के तट पर स्थित इस मंदिर में 24वें तीर्थंकर श्री वर्धमान महावीरजी की मूर्ति विराजित है। आमतौर पर भारत में एक शिखर वाले मंदिर बहुतायत में हैं, लेकिन यहां स्थित तीन शिखर वाले मंदिर की बात ही कुछ और है। इस मंदिर में देश-विदेश से जैन धर्मानुयायियों के अलावा पूरे राजस्थान से गुर्जर और मीणा समुदाय के लोग भी आते हैं।
श्री महावीर जी मंदिर के निर्माण के पीछे सुंदर कथा है। ‘कुछ चार सौ साल पहले की बात है। एक गाय अपने घर से प्रतिदिन सुबह घास चरने के लिए निकलती थी और शाम को घर लौट आती थी। कुछ दिन बाद जब गाय घर लौटती थी तो उसके थन में दूध नहीं होता था। इससे परेशान होकर एक दिन उसके मालिक चर्मकार ने सुबह गाय का पीछा किया और पाया कि एक विशेष स्थान पर वह गाय अपना दूध गिरा देती थी। यह चमत्कार देखने के बाद चर्मकार ने इस टीले की खुदाई की। खुदाई में श्री महावीर भगवान की प्राचीन पाषाण प्रतिमा प्रकट हुई।
भगवान के इस अतिशय उद्भव से प्रभावित होकर बसवा निवासी श्री अमरचंद बिलाला ने यहाँ एक सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया। यह मंदिर प्राचीन और आधुनिक जैन वास्तुकला का अनुपम समागम है, जो प्राचीन जैन कला शैली के बने मंदिरों से अलग है। यह मंदिर मूल रूप से सफेद और लाल पत्थरों से बना है, जिसके चारों ओर छत्रियाँ बनी हुई हैं। इस विशाल मंदिर के गगनचुम्बी धवल शिखर को स्वर्ण कलशों से सजाया गया है। इन स्वर्ण कलशों पर फहराती जैन धर्म की ध्वजाएँ सम्यक दर्शन, ज्ञान एवं चरित्र का संदेश दे रही हैं। मंदिर में जैन तीर्थंकरों की कई भव्य मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। इसके साथ ही मंदिर की दीवारों पर स्वर्ण पच्चीकारी का काम किया गया है, जो मंदिर के स्वरूप को बेहद कलात्मक रूप देता है। मंदिर के सामने सफेद संगमरमर से भव्य ऊँचा मानस स्तंभ बनाया गया है, जिसमें श्री महावीरजी की मूर्ति स्थापित की गई है।
श्री महावीर जी में मुख्य मंदिर के अलावा तीन और जिन (जैन) मंदिर हैं। इनमें मुख्य मंदिर के पास ही स्थित कांच का मंदिर विशेष तौर पर दर्शनीय है। साथ ही मुख्य मंदिर के नीचे स्थित ध्यान केंद्र में स्थित सैकड़ों रत्न प्रतिमाएं भी दर्शकों के आकर्षण का केंद्र होती हैं। पास ही स्थित म्यूजियम में खुदाई में समय-समय पर मिले अभिलेख आदि संग्रह करके रखे गए हैं। इनसे जैन कला और संस्कृति को क़रीब से जानने का मौका मिलता है। यहां स्थित पुस्तकालय में जैन संस्कृति से संबंधित प्राचीन ग्रंथ और पांडुलिपियां भी मौजूद हैं।
सुभाष ओरा जैन