राजा श्रेणिक – बौद्ध धर्म के कट्टर अनुयायी, मुनिराज के गले में सर्प डालने वाला, आत्महत्या कर नरक में, कभी मुनि दीक्षा नहीं, फिर भी बनेंगे अगले तीर्थंकर

0
1765

23 मई 2022/ जयेष्ठ कृष्णा अष्टमी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
,हमारी अगली चौबीसी में होने वाले प्रथम तीर्थंकर राजा श्रेणिक के चरित्र का संक्षिप्त विवरण इस तरह से है –
1. जन्म से राजा श्रेणिक बौद्ध धर्म के कट्टर अनुयायी थे. राजा श्रेणिक ने उस समय अपने राज्य में बौद्ध धर्म को ही अपना राजधर्म बनाया था.

2. उन्होंने अत्यंत संस्कारी, जैन धर्मी और विदूषी राजकुमारी चेलना को धोखा देकर और झूठ बोल कर कि वे खुद जैन हैं; उनसे शादी की थी.
3. वे बौद्ध साधुओं को बहुत मान-सम्मान देते थे, आदर-सत्कार देते थे और उन्हें महलों में खाने पर बुलाते थे; जिसकी व्यस्था रानी चेलना को करनी पड़ती थी.

4. साथ ही राजा श्रेणिक अपने राज्य के जैनियों और दिगम्बर जैन मुनियों का अपमान करने और उन्हें नीचा दिखाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे.
5. जब रानी चेलना ने बौद्ध साधुओं के पाखण्ड को उजागर किया, तो राजा श्रेणिक ने गुस्से में आकर ध्यान में मग्न दिगम्बर जैन मुनिराज के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया था, जिसके परिणाम स्वरुप उन्हें सातवें नरक की गति का बंध हो गया. रानी चेलना को भी उन्होंने यह बात तीन दिन बाद बताई. तब तक मुनिराज के गले में मरे सर्प के साथ उपसर्ग होता रहा.

6. आपके विचार में क्या राजा श्रेणिक सरीखा दूसरों को धोखा देने वाला, मुनिराजों के गले में सर्प डालने वाला भीषण अपराधी व्यक्ति उसी जन्म में तीर्थंकर पद का बंध कर सकता है और तीसरे भव में ही मोक्ष जा सकता है?

7. राजा श्रेणिक को उनके पुत्र ने उनका राज्य छीन कर कारागृह में डाल दिया था. कारागृह में राजा श्रेणिक को उनका पुत्र बहुत मारता, सताता और पीड़ा देता था. वे मार खा खा कर बहुत सहमे और डरे रहते थे. एक दिन पुत्र को पुनः जेल में दौड़ कर आते देख कर राजा श्रेणिक इतने भयभीत हुए कि उन्होंने कारागृह की सलाखों पर अपना सिर पटक-पटक कर अपनी जान दे दी. इस तरह वे आत्महत्या के महापाप के फलस्वरूप क्षायिक सम्यकद्रष्टि होते हुए भी नरक में गये.
8. इस तरह इन विपरीत परिस्थितियों में भी उसी भव में श्रेणिक राजा ने तीर्थंकर पदवी का बंध कैसे बाँध लिया होगा, यह मैं अक्सर विचार करती हूँ.

9. राजा श्रेणिक आज नरक में हैं और वे वर्तमान में क्षायिक सम्यकद्रष्टि हैं. इस सम्यकदर्शन नामक एक गुण के कारण ही वे वर्तमान में नरक में होते हुए भी वहां से निकलकर पूर्व में कभी भी मुनि दीक्षा नहीं लेने पर भी सीधे अगले चौबीस तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थंकर बन कर मोक्ष में जाने वाले हैं.
10. ऐसे इस सम्यक्त्व की महिमा तो देखो कि राजा श्रेणिक के नरक में होते हुए भी यहाँ की पृथ्वी पर उनके गर्भ कल्याणक के छः मास पूर्व से देवताओं द्वारा रत्नों की बारिश की जायेगी.

11. हे प्रभो, यह क्यों और कैसे संभव हुआ है, इस पर आप भी विचार कीजिये ताकि हम सभी उस मार्ग को अपना कर खुद भी अपना कल्याण कर उनके समान तीर्थंकर या परमात्मा बन सकें.