जैन धर्म में सल्लेखना समाधि को मृत्यु महोत्सव के रूप में मनाया जाता है व् हर साधक का लक्ष्य ये ही होता है
ऐसी है स्नेह माँ जिन्होंने सदा स्नेह दिया आज 19 जून शरीर छोड़ अनन्त की यात्रा पर निकल गई :
शिवनगर जबलपुर में पूज्य आचार्य श्री १०८ #विद्यासागरजी महाराज के परम मंगल आशीर्वाद से एवं आर्यिका माँ १०५ #दृढमतिमाताजी ससंघ के निर्देशन में दशम प्रतिमाधारी श्री श्रद्धाश्री जी माताजी (ब्र.संजीव भैया,ब्र.शैलू भैया कटंगी की माँ) 88 वर्षीय श्रद्धा श्री माताजी पिछले 175 दिनो से सल्लेखना की साधना में रत थी , की समाधि 7.20 पर अत्यंत सुखद श्रेष्ठ हुई।
उन्होने पिछले 175 दिनो से मात्र उबली हुई लौकी , वह भी दिन में एक बार ही ग्रहण की ! जिसमें से 55 दिनो में जल उपवास किये .
और पिछले 26 दिनो से , आचार्य भगवंत के निर्देशानुसार जल उपवास की साधना चल रही थी ! और अभी पिछले 10 दिनो से उनको जल दिया जा रहा था , मगर वे मुंह में अंदर जल ग्रहण नही करके , वापिस निकाल देती क्योंकि वे मना कर रही है कि जल भी नही लेना !
धन्य है ऐसी उत्कृष्ट साधना
और इनकी इस उत्कृष्ट समाधि के लिये , गुना नगर की शान , रंगोली मास्टर , भारत वर्ष में विख्यात , समाधि expert , उत्कृष्ट साधना की धनी , एक साल मे तीनो दसलक्षण पर्व में दस उपवास की साधना करने वाली , भोजन बनाने की कला में दक्ष , एक शतक से ऊपर समाधि कराने वाली !
नाड़ी विशेषज्ञ व हस्त रेखा विशेषज्ञ और भी न जाने कितने गुण समाहित ,गुणो की खान कहना उचित ही है
ऐसी गुणो की खान , ब्रहमचारिणी आराधना दीदी गुना इन की सल्लेखना के लिये , लगभग साढे पॉच माह से क्षपक की सेवा में लगी हुई ,जो निरंतर इनकी समुचित देखभाल भी पूरी पूरी रात जागकर कर रही थी