शिरपुर में आचार्य श्री व उनके आसपास चैनल महालक्ष्मी और सान्ध्य महालक्ष्मी के 24 घंटे
13 अक्टूबर 2022/ कार्तिक कृष्णा चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
सराक क्षेत्रों के युवा बालकों तथा दशलक्षण महापर्व के दौरान सराक के विभिन्न क्षेत्रों में सराक बंधुओं को मूलधारा से जोड़ने गये धर्मप्रचारक युवाओं के साथ पहले गुना में मुनि श्री अक्षय सागरजी महाराज ससंघ के साथ इस प्रथम प्रयास को आगे दोगुनी – चौगुनी रफ्तार से करने की दिशा में चर्चा करने के बाद तीन बड़ी गाड़ियों में 740 किमी के लगभग की दूरी लगातार 18 घंटे में पूरी कर सान्ध्य महालक्ष्मी की टीम सोमवार 10 अक्टूबर को दोपहर दो बजे शिरपुर जैन पहुंची। चंद मिनट में तैयार होकर सब मिलकर निकलंक निकेतन पहुंच गये। आचार्य श्री विद्यासागरजी के दर्शनों के लिये उनके कमरे के बाहर खड़े हो गए। स्वयंसेवक बैरिकेडिंग के आगे दीवार बने खड़े थे।
हमने बाहर प्रांगढ़ को निहारा, सबसे ऊपर शरद पूर्णिमा का बैनर और नीचे हिंदी का सम्मान, राष्ट्र का सम्मान बैनर लगा था। पंक्तियां बहुत अच्छी लिखी थी – अंग्रेजी A-APPLE से शुरू होती है और Z-ZEBRA जानवर बनाकर छोड़ती है। दूसरी तरफ लिखा था – हिंदी विश्व की एकमात्र भाषा है जो अ – अनपढ़ से शुरू होकर ज्ञ – ज्ञानी बनाकर छोड़ती है।
राख की नींव पर निर्वाण फिर भी संभव है, किंतु किसी विदेशी भाषा की नींव पर राष्ट्र निर्माण असंभव है। सामने मंच था और उसके दोनों तरफ दो दरवाजे, जो बंद और बाहर स्वयंसेवक खड़े थे, दोनों तरफ गैलरी बनी थी और गैलरी के अंत में बेरिकेड और स्वयंसेवक खड़े थे। बिना अनुमति, नो एंट्री।
अभी ये देख ही रहे थे कि भैयाजी ने पास आकर कहा – आप ऐलक सिद्धांत सागरजी से मिल लें। एकदम आवाक – उन्हें कैसे पता हम यहां खड़े हैं। भैया जी से इसलिये सवाल भी किया – आपने हमें पहचाना क्या? सवाल आगे बढ़ाते, उन्होंने स्पष्ट कहा कि आप दोनों वहां चले तो जाएं। इसके बाद किसी स्वयं सेवक ने नहीं रोका। दरवाजा खोला- ऐलक महाराजश्री को ‘इच्छामि’ कहा, उन्होंने देखा और सीधे नाम से पुकारा।
बस उस क्षण के बाद हम नहीं रुके। पिछली बार ऐलक सिद्धांत सागरजी के दर्शन शिखरजी में पंचकल्याणक में कुछ वर्ष पहले हुए थे, पर अब चर्चा शुरू हुई शिरपुर के बारे में। फिर दिल्ली आदि में मंदिरों में परम्परायें बदलने पर। दस मिनट के बाद ही उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष पार्श्वनाथ पर आपके दोनों वीडियो आचार्य श्री को ब्रह्मचारी भैया जी द्वारा जानकारी दे दी गई है। आओ उनके दर्शन कराते हैं पहले। यह सुनना था कि 18 घंटे लगातार गाड़ी में सफर करने की थकान पता नहीं कहां काफूर हो गई। कदम तेजी से आचार्य श्री के कमरे की ओर बढ़ने लगे। अब तक दीवार बने स्वयंसेवक, अब बेरिकेड व दरवाजा खोलने में देर नहीं लगा रहे थे।
आचार्य श्री अंदर कमरे में एक पुस्तक के स्वाध्याय में लीन थे। और हम बड़े हाल में हाथ जोड़े टकटकी लगायेआचार्य श्री को देख रहे थे। ऐलक महाराज ने आचार्य श्री को बताया कि ‘चैनल महालक्ष्मी से शरद जैन’। आवाज हमारे कानों तक भी पहुंची। महाराज को हमने पहले ही बता दिया था कि सूतक लगे हैं। उन्होंने आचार्य श्री से यही कहा तो आचार्य श्री ने हमें इंगित करते हुए पुस्तक से नजर उठाये बिना कहा – अपना विवेक इस्तेमाल करो।
आचार्य श्री के मुख से अभी इतना ही निकला था कि हमने दरवाजे पर लगी चौकी एक तरफ कर आचार्य श्री के कमरे में प्रवेश कर तीन बार नमोस्तु निवेदित किया। आचार्य श्री ने अपनी स्वाध्याय की निरंतरता को जारी रखते हुए हाथ उठाकर, मुस्कराहट बिखरते हुये आशीर्वाद दिया।
कमरे को एक बार निहारा, लगभग 10 गुना 15 फुट का कमरा था। पीला डिस्टेम्पर हो रहा था। आचार्य श्री के बार्इं तरफ 6 गुना 4 फुट की खिड़की थी, जिसमें से रोशनी और हवा छन-छन कर अंदर प्रवेश कर रही थी और तब भी हमारे माथे पर पसीने की बूंदें छलक रही थीं, अंदर अजीब सा डर था, हमारे बेबाक एपिसोडों की जानकारी आचार्य श्री तक पहुंचती होगी, हमारी कैसी छवि होगी और ऐसे में क्या कहे गुरुवर से।
पर पहली बार चैनल महालक्ष्मी को आचार्य श्री से कुछ कहने का सौभाग्य मिला था। दीवार पर ऊं ऊपर से नीचे क्रम में कमरे में 3-3 की लगभग 18 पंक्तियां थीं। एक तख्त, जिस पर आचार्य श्री स्वाध्याय में मग्न थे। कुछ पुस्तकें – शास्त्र, शास्त्र पीठिका पर रखे थे। पास में एक पेन रखा था। बिना सहारे बैठे, स्वाध्याय में मग्न उनका चिर-परिचित अंदाज देखते मन प्रफुल्लित हो रहा था। दो तरफ दीवार, दो तरफ चार बेंच रखी थी। बस यही था कमरे में। तभी एक दम्पत्ति और आ गये जो पूर्व में महाराष्ट्र के मंत्री और सांसद रह चुके हैं और चुनाव लड़ने के लिए आशीर्वाद लेने आये थे।
पांच-सात मिनट में आचार्य श्री ने स्वाध्याय समाप्त कर पुन: आशीर्वाद दिया और हमने एक सांस में शिरपुर व अन्य कुछ जिज्ञासायें रख दी। आचार्य श्री ने मुस्कराते हुये ऐलक सिद्धांत सागरजी की ओर संकेत कर दिया। हमने स्पष्ट कहा गुरुवर उनकी चर्या में आपकी स्वीकृति व आशीर्वाद है, वे मुस्करा दिये। आचार्य श्री मौन थे, और मन में उत्सुकता थी कि वे कुछ कहें। फिर कहा आचार्य श्री आपकी अनुमति से इस बारे में हम महाराज से चर्चा कर लेते हैं, पर आपका इसके लिये आशीर्वाद जरूरी है। अब पुन: हाथ उठाकर, आचार्य श्री ने खुलकर मुस्कराते हुए कहा – ‘आशीर्वाद’।
इतने तेज मधुर स्वर में बोला गया यह शब्द बाहर की दीवारों को भी आनंदित कर गया होगा, क्योंकि कहते हैं ना, दीवारों के भी कान होते हैं। अब इसके बाद हम निरुत्तर हो गये थे, पता नहीं सारे सवालों को पुलिंदा, दिमागी द्वार से जिह्वा पर आने को तैयार नहीं था।
अपलक 3-4 मिनट आचार्य श्री को देखते रहे और आचार्य श्री अपने अंदाज में हाथों की अंगुलियां देखते रहे। नहीं बोल पाये पहली बार, आवाज गले में रुक -सी गई थी, आंखें गीली हो चुकी थी। सचमुच आचार्य श्री को देखकर हर जिज्ञासा, समाधान के द्वार पर पहुंच रही थी। सुना था आचार्य श्री समय नहीं देते, पर यहां तो हम ही निरुत्तर थे। सुना यह भी था कि न वो आमंत्रित करते हैं, ना वो जाने को कहते हैं। उनके अनमोल समय को देखते हम ही ना चाहते हुए कमरे से बाहर आ गये। श्री सिद्धांत सागरजी महाराज से अंतरिक्ष पार्श्वनाथ पर खुलकर चर्चा करने के संकेत और फिर आशीर्वाद शब्द की झंकार ने हमें निशब्द कर दिया था।
कमरे से निकलते हुए एक बार चारों तरफ निहारा और ऐलक श्री सिद्धांत सागरजी महाराज के साथ उनके कमरे की ओर हमारे कदम बढ़ चले। पर बार-बार पूरा घूमकर पीछे देखते जा रहे थे, वो दस मिनट सचमुच एक भगवंत के सान्निध्य में हमने बिताये, अकल्पनीय थे वे क्षण। (क्रमश:)