शीलोदय तीर्थ:भूमि कभी रत्नो की मड़ी हुआ करती थी वो वीरान हो खण्हर में वदल रही थी जिसे गुरु देव के चरणों पड़ते ही तीर्थ का रूप मिल गया

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वूंदी में आपका घर और शीलोदय तीर्थ का काम नहीं रूकना चाहिए
शीलोदय तीर्थ बुंदी– जिले के सबसे बड़े तीर्थ अतिशय क्षेत्र शीलोदय में सुप्रसिद्ध जैन संत मुनि पुगंव श्री सुधासागरजी महाराज मुनि श्री महासागर महाराज मुनि श्री निश्कम्प सागरजी क्षुल्लक श्री गम्भीर सागर जी महाराज क्षुल्लक श्री धैर्य सागर जी महाराज ससंघ का आज सुबह भव्यविशाल शोभा यात्रा के साथ मंगल प्रवेश हुआ जहाँ भक्तों ने मुनिश्री का भव्ययाति भव्य स्वागत है अभिनंदन किया

मुनि संघ के वुंदी वाईपास से निकलकर अतिशय क्षेत्र शीलोदय तीर्थ जाने के निर्णय से सभी भक्तों में खुशी की लहर दौड़ गई सैकड़ों भक्त सुबह से ही वुदी वाइपास से मुनि संघ के साथ पदविहार करते हुए आगे बढ़ रहे थे तीर्थ पर पहुंचते के दो किलोमीटर पूर्व से भव्य जुलूस के रूप में मुनि संघ को प्रवेश कराया गया शोभायात्रा में आगे आगे वैन्ड़ वाजे उनके पीछे उत्साह से भरे शीलोदय नव युवक मड़ल इसके बाद महिला मंडल वुंदी का दिव्य घोष इसके बाद पूजन मड़ल इसके वाद महिला महा समिति का दिव्य घोस इसके बाद पुरूषो मड़ल इसके वाद समाज जनो के मध्य मुनि संघ चल रहा था जय जय करो और अहिंसा के घोष के साथ मुनि संघ का तीर्थ क्षेत्र में प्रवेश हुआ जहाँ शोभा यात्रा धर्म सभा में वदल गई समारोह के प्रारंभ में आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के चित्र का अनावरण चमलेश्वर कमेटी के अध्यक्ष प्रकाश कासलीवाल अमोलक चन्दजी माडल गड़ व दीप प्रज्वलन कमेटी के अध्यक्ष टीकम जी जैन महामंत्री सुनील जैन सह निरादेशक महेन्द्र जैन नरेन्द्र जैन अशोक जैन ने किया
समारोह का संचालन करते हुए ।

शीलोदय से धर्म का सन्देश जायेगा
तीर्थ वंदना के सह सम्पादक विजय जैन धुर्रा ने कहा कि मुनि श्री के आशीर्वाद से आज शीलोदय तीर्थ की पहचान भारत वर्ष में हो रही है तो भूमि कभी रत्नो की मड़ी हुआ करती थी वो वीरान हो खण्हर में वदल रही थी जिसे गुरु देव के चरणों पड़ते ही तीर्थ का रूप मिल गया यहाँ पाषाण से निर्मित होने वाले जिनालय अयोध्या के श्री राम मन्दिर की तरह वनकर इस भूमि से पुनः धर्म का सन्देश देगे।
धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा पाप किया है तो मैं सजा भोगुंगा अपनी जिदंगी में किसी दिन को बुरा मत कहना कोसना मत तुम्हारी जिदंगी में कितना ही बुरा वक्त आ जाये तो कोसना मत इस शीलोदय की इस भूमि ने कैसे कैसे दिन देखे हैं अव इसका पुनः भाग्य जागा है

महापुरुष काल की कठपुतली बनकर नहीं चलते
मुनि श्री ने कहा कि महा पुरुष काल की कठपुतली वनकर नहीं चलते वे जो चलते हैं वही काल बन जाता है सारे लोग अमावस्या को बुरा मानते हैं महावीर ने काली अमावस्या को पवित्र और पूज्य बना दिया कभी भी अपनी जिदंगी में भाग्य का मत खाना पुरूषार्थ करके कमाकर खाना मैं भाग्य की लकीरो को नहीं गिनता कभी भी कैसा भी दिन आ जाये भाग्य के भरोसे मत रहना भाग्य को पूँजी बनाकर छोड़ देना जो तेरी अर्जी है वही भगवान की मर्जी है हर भूल पर हर चूक पर अपने को धिक्कार ना ये कहना ये मेरे चूक थी।

उन्होंने कहा कि मन पर मुझे गर्व है कि तु पावन और पवित्र है आख कान पैर तुम पर मुझे गर्व है तुम पवित्र और पावन हो अब में उन धर्मात्माओ की बात कर रहा हूँ जो मरकर देव पर्याय को प्राप्त कर लेते हैं अच्छे कार्य करने वाले देव भोगभूमि को प्राप्त कर लेते है

मुनि श्री ने कहा कि जो महिमा शास्त्रों में मनुष्य की गाई है क्या कभी फिलिग हुई कि मैं वही हूँ मेरा मुख श्रेष्ठ है कि कभी कटुक वचन नहीं निकालते।
जीवन में वहुत सारी विचार धाराये होती हैं कुछ लोग अपने जीवन को जिकर निकाल देते हैं शास्त्र के मनुष्य अलग है और हम लोग अलग है तो मैं भी तो कह देता कि शास्त्रों के मुनिराज अलग है और हम महाराज लोग अलग है यदि ऐसा कुछ हो जाये तो बहुत अनर्थ हो जायेगा शास्त्रों में जो भगवान लिखा है वही मेरा भगवान मेरा होगा इसमें कोई अंतर नहीं होगा तो तुम पंचम काल में सफल हो गये ये ही स्थिति गुरु की करना शास्त्रों में वर्णीत गुरु और मेरा गुरु एक है समझ लेना कि तुम्हारा जीवन सफल हो गया इनको मानने वाले विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर साक्षात विधमान बीस तीर्थंकरो के दर्शन करते हैं