तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ का मोक्षकल्याणक : 05 मार्च – शिखरजी में जहां की मिट्टी आज भी ले जाना नहीं भूलते

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पर्वों वाला पखवाड़ा फाल्गुन माह का कृष्ण पक्ष, 7 दिन में 8 तीर्थंकरों के 11 कल्याणक। अब फाल्गुन कृष्ण षष्ठी को है 7वें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ जी का ज्ञान कल्याणक

नौ साल के तप के बाद आपको फाल्गुन कृष्ण छठ (04 मार्च) को काशी में केवलज्ञान की पुष्टि हुई और फिर आपका केवलीकाल रहा। एक लाख पूर्व बीस पूर्वांग तथा नौ वर्ष, इस दौरान सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से कुबेर समोशरण रचता गया और आपकी दिव्य ध्वनि खिरती गई। आपके 95 गणधर थे, जो आपकी दिव्यधवनि को समझते और आगे महामुनिराजों को पहुंचातें।

जब आपका आयु कर्म मात्र एक माह शेष रह गया, तो आप पहुंच गये अनादि निधन तीर्थ सम्मेद शिखरजी और फिर इसी प्रभास कूट से आप फाल्गुन कृष्ण सप्तमी (5 मार्च) को पूर्वान्ह काल में 500 मुनिराजों के साथ एक समय में इस धरा को छोड़ सिद्धालय पहुंच गये। इस कूट से 49 कोड़ा कोड़ी, 84 करोड़ 72 लाख, 7 हजार, 742 मुनिराज मोक्ष गये।

और हां, इस प्रभास कूट के आसपास की माटी मानो तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ के तप रोगहारक बन गई, जिसका प्रभाव आज भी कामय है। इसका पता असल में तब चला जब कौशाम्बी के राजा उद्योत्तक यहां आये, उन्हें कोढ़ था, उन्होंने सोचा रोग ठीक होना नहीं है, तो क्यों न अंतिम समय में यहां दर्शन करके कर्मों की निर्जरा कर लूं, पर यहां पहुंचते ही, जैसे ही पंच नमस्कार के लिये मस्तक का यहां माटी से स्पर्श हुआ, चमत्कार हो गया, कोढ़ गायब और सुन्दर छवि वाले महाराजा उद्योतक ने नगाड़े बजवा दिये। आज तक यहां आने वाले कई दर्शनार्थी यहां की थोड़ी मिट्टी घल ले जाते हैं, निर्माण में लगाते हैं। 

सचमुच है, यहां की यह चमत्कारिक अतिशयकारी धरा, बोलिये तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान की जय!