11 मार्च 2023/ चैत्र कृष्ण चतुर्थी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/निर्मलकुमार पाटोदी/इंदौर
दिगंबर जैन धर्म और समाज के सभी महानुभावों को जानकारी प्रदान करना उचित और आवश्यक लग रहा है। इसीलिए, चाहें तो, विचार किए, कुछ करने की भावना हो, तो ठीक है, नुक़सान-लाभ, दोषी-हितैषी कौन है, यह बताना यहाँ मेरा हेतु नहीं है!
यहां प्रदान की जा रही जानकारी/सूचना हमारे युग की है। हमारे जीवन में घटित हुई है। हम साक्षी हुए हैं।
– शायद कुछ-कुछ हमारे दिगंबर जैन धर्म और समाज के इतिहास में अंकित हो जाए, धर्म और समाज के सामने क्या कुछ घटित हुआ था। दोषी कौन-कौन थे। कहना होगा यह इतिहासकारों का विषय है।
-हे जिन सिद्ध आत्माओं के उपासकों,
संभवतः आप महानुभावों को जानकारी ज्ञात होगी। फिर भी…
-पिछले कुछ महिने पहले सम्मेदशिखर जी तीर्थराज के संबंध में झारखंड राज्य सरकार के प्रस्ताव पर भारत सरकार ने राजपत्र जारी किया था। उसको लेकर पूरा समाज सक्रिय हुआ था। किंतु सत्ता के दोनों पक्षों की ओर से समाधान करने का अब तक किसी भी पक्ष की ओर से एक भी शब्द समाज को लिखा हुआ नहीं मिल सका है। भविष्य में हमारा पक्ष क्षार अधिकार इस अनादि निधन महानतम तीर्थराज पर कमजोर होने की संभावना नज़र आ रही है।
-अभी इसी २२ फ़रवरी २०२३ को सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिक्ष पार्श्वनाथ, शिरपुर, महाराष्ट्र के संबंध में निर्णय दिया है। जिसमें श्वेतांबर पक्ष के अधिवक्ताओं के तर्कों को स्वीकार करते हुए अंतरिम निर्णय दिया गया है। निर्णय में है कि अंतरिक्ष पार्श्वनाथ भगवान की मूल प्रतिमा/मूर्ति पार्श्वनाथ भगवान की श्वेतांबरों की है। उन्हें मूर्ति पर लेप लगाने का अधिकार दे दिया गया है। दिगंबर जैन समाज दिए गए समय में दर्शन-पूजन कर सकते हैं। व्यवस्था श्वेतांबर जैन समाज की रहेगी।
-सर्वोच्च न्यायालय में दिगंबर जैन समाज की तीर्थक्षेत्र कमेटी मुख्य पक्ष है। उसने आनन-फ़ानन में सुनवाई से एक दिन पहले वकील बदल लिया। वकील ने न्यायालय में जो कहना चाहा, सुना नहीं गया। एक प्रमुख पदाधिकारी के शब्दों में श्वेतांबर पक्ष के वकीलगण अपने तर्क प्रस्तुत करने के लिए टूट पड़े थे। उनमें एक जैन था। उनके तर्कों को सुना गया, ध्यान दिया गया। हमारे वकील ठीक से तर्क प्रस्तुत ही नहीं कर सके। समाज के लगभग बीस लाख रुपये शुल्क हमारे वकील पक्षों को चुका दिया गया है।
-सम्मेदशिखर जी तीर्थराज पर अधिकार और व्यवस्था को लेकर एक पुराना प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में १ मार्च को सुना जाना था। उसमें भी विवाद श्वेतांबर समाज से है। झारखंड राज्य सरकार उसमें पक्षकार है। झारखंड राज्य सरकार के तारीख़ बढ़ाने के आवेदन पर उस दिन सुनवाई नहीं हो सकी। वकीलों को उनका शुल्क तो नियमानुसार चुकाया गया होगा।
गिरनार जी हाथ से निकल गया है। यह धारणा समाज में है।
-भगवान नेमिनाथ जी की निर्वाण भूमि गिरनार जी तीर्थराज के संबंध में न्यायालय में और इस सिद्धक्षेत्र पर हमारे समाज कि जो स्थिति है वह किसी से छिपि नहीं है। नेमिनाथ भगवान की निर्वाण भूमि पर स्थापित प्राचीन, पुरातत्व संरक्षित चरण-चिह्न और पूरी टोंक के अंदर लगभग सब कुछ परिवर्तन कर दिया गया है। इतना कुछ हो जाने के बावजूद जमात के कुछ श्रद्धालुओं ने हार न मानते हुए पिछले एक वर्ष से प्रमाण एकत्रित करने का पुरुषार्थ किया है। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं से परामर्श करके जूनागढ़ ज़िला न्यायालय में गिरनार पहाड़ पर स्थित धार्मिक टोंकों पर अधिकार के लिए जिला न्यायालय में वाद प्रस्तुत किया हुआ है।
-हमारे महान, प्रमुख तीर्थों के संबंध में जो भी जानकारी सामने है, उसे प्रदान करने का प्रयास किया है। धर्म और समाज तक जानकारी पहुँचाने की कोशिश की है, यही मेरे हाथ में हैं।
विडंबना यह है कि दिगंबर जैन समाज पथ, आम्नाय और मतभेदों में बिखरा हुआ है। समाज का कोई एक सर्वमान्य, समर्पित, समय देने वाला, धार्मिक और विश्वसनीय नेतृत्व कर्ता ही नहीं है। जिससे नुक़सान धर्म क्षेत्रों का हो रहा है। समाज की अपरिमित क्षति हो रही है।