एक और मुनि ने दिया.बलिदान जब तक झारखंड सरकार सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थल घोषित नहीं करेगी तब तक मुनि ऐसे ही बलिदान देते रहेंगे

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6 जनवरी 2022/ पौष शुक्ल पूर्णिमा /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /-
जयपुर में दो मुनियों ने सम्मेद शिखर को बचाने के लिए अपना बलिदान दिया
केंद्र सरकार व झारखंड सरकार से जैन धर्म की आस्था का सर्वोच्च केंद्र सम्मेद शिखर को पर्यटन नोटीफिकेश वाली अधिसूचना को रद्द कर इसे पवित्र तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग को लेकर राजस्थान जयपुर में अनशन रत मुनि श्री सुज्ञेय सागर जी की दिनांक 3 जनवरी को समांधि हो गई थी,समाधि के उपरांत उसी दिन एक ओर दिगंबर जैन संत मुनि श्री समर्थ सागर जी ने अनशन प्रारम्भ कर दिया।

जिनका आज 6 जनवरी समाधि सम्राट आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी ऋषिराज के 51 वे समाधि दिवस पर गुरुवार देर रात 1.20 बजे अपने गुरु राष्ट्र गौरव चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनील सागर जी गुरुराज के पावन चरणो में चर्तुविध संघ की उपस्थिति में धर्म ध्यान पूर्वक वीर समाधि मरण हुआ। चार दिन में ये दूसरे संत हैं, जिन्होंने अपनी देह त्याग दी। शुक्रवार सुबह जैसे ही संत के देह छोड़ने की जानकारी मिलते ही बड़ी संख्या में जैन समुदाय के लोग मंदिर पहुंचने लगे।

संत की डोल यात्रा संघीजी मंदिर से विद्याधर नगर तक निकाली गई। इस मौके पर जैन संत शशांक सागर ने कहा कि जब तक झारखंड सरकार सम्मेद शिखर को तीर्थ स्थल घोषित नहीं करेगी तब तक मुनि ऐसे ही बलिदान देते रहेंगे। जयपुर के सांगानेर स्थित संघीजी दिगम्बर जैन मंदिर में समर्थसागर जी तीन दिन से आमरण अनशन कर रहे थे। बता दें कि सम्मेद शिखर को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के विरोध में इसी मंदिर में जैन मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने 3 जनवरी को प्राण त्यागे थे।
मंदिर में आचार्य सुनील सागर महाराज प्रवास पर हैं और उनके सानिध्य में ही मुनि समर्थसागर काे जैन रीति-रिवाजों के साथ आज समाधि दे दी गई।

शुक्रवार की सुबह एक बजे जैन मुनि समर्थसागर ने अपनी देह त्याग दी। इन्होंने श्री सम्मेद शिखर को बचाने के लिए अपनी देह का बलिदान दिया है, जो हमेशा याद रखा जाएगा।

समर्थसागर महाराज आचार्य सुनील सागर महाराज के ही शिष्य हैं। इससे पहले जब सुज्ञेयसागर महाराज ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था तब समर्थसागर जी ने धर्मसभा के दौरान अनशन का संकल्प लिया था और तब से वह उपवास पर चल रहे थे।

इसी मंदिर में जैन मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने मंगलवार को प्राण त्याग दिए थे।आचार्य सुनील सागर ने कहा कि समर्थसागर महाराज के पास गुरुवार को भाजपा के कई बड़े पदाधिकारी आए थे, लेकिन उन्होंने यही कहा कि जब तक सम्मेद शिखर को लेकर झारखंड सरकार स्थिति प्रैक्टिकल रूप से सामने नहीं रखेगी, तब तक मेरा अनशन जारी रहेगा। उन्होंने तभी से जल का भी त्याग कर दिया था। उन्होंने पूरे देश के लिए अपना जीवन अर्पण किया है।

मुनि श्री समर्थ सागर जी का जन्म 15 नवंबर 1941 को राजस्थान वागड़ की पवित्र माटी अनेकानेक संतो की जन्म भूमि लोहरिया कस्बे में श्री रतन लाल जी बोहरा व मूंगी बाई के घर हुआ था। 6 दिसंबर 2019 को बांसवाड़ा में पूज्य आचार्य श्री सुनील सागर जी गुरुराज के द्वारा आपको जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान की गई थी।

अपने तीर्थराज पर आए सियासी संकट व सरकार की गलत नीति से समूचा जैन जगत अक्रोशित हुआ जिसमे हमारे साधु भगवंत जिनके लिए भी साधना का श्रेष्ठतम स्थान श्री सम्मेद शिखर जी है क्योंकि इस पावन धरा पर 24 तीर्थंकर का आगमन हुआ जिसमे 20 तीर्थंकरों व असंख्य जैन मुनियों ने निर्वाण प्राप्त किया।

हर जैनी चाहे वह साधु हो या श्रावक वह अपने जीवन के अंतिम पलो में भी श्री सम्मेद शिखर जी पर्वत टोको का ध्यान लगाकर उनको वंदन कर अपने आपको धन्य करते है।

सम्मेद शिखर जी की पवित्रता व महत्ता को जैन धर्म का बच्चा समझता है।

इसलिए इस तीर्थराज की मर्यादा को चाहे केंद्र हो या राज्य सभी राजकीय नियमावली में इसे सर्वोच्च पवित्र स्थल का दर्जा दिलाने व अवांछनीय-मौज -मस्ती -पर्यटन क्रिया कलापों की मानसिकता को हमेशा के लिए रोक लगाने की मांग को लेकर *हमारे दो दिगंबर जैन संतो ने अनशन पूर्वक वीर समाधि मरण को प्राप्त किया।

जब जब शिखर जी के लिए जैन वीरो की आहुतियो का वर्णन होगा तब तब राजस्थान मेवाड़ व वागड़ में जन्मे इन दो महान संत मुनि श्री सुज्ञेय सागर जी व मुनि श्री समर्थ सागर जी का नाम जयवंत रहेगा।

देश की केंद्र सरकार व झारखंड सरकार के साथ साथ जैन समाज के तमाम नेतागण पधाधिकारी इस विषय की गंभीरता को समझे की भारत जहा सत्य अहिंसा और धर्म का पग पग पर डेरा लगता है,भारत की यह पावन भूमि जो ऋषि मुनियों की साधना भूमि है वहा संतो को अपने ही तीर्थो की पवित्रता के लिए अनशन पूर्वक देह का विसर्जन करना अत्यंत दुखद है।
हमारे वीर शिरोमणि दोनो मुनि भगवन्तो के चरणो में बारंबार नमन
– शाह मधोक जैन