सान्ध्य महालक्ष्मी से गिरिडीह उपायुक्त की EXCLUSIVE बात
॰ झारखंड सरकार के दिशा-निर्देशों का पूरा पालन करना होगा
॰ सभी धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस, होटल पूरे खुले रहेंगे
॰ मंदिरों में पूजा-प्रक्षाल आदि पुजारी करेगा और खुले रहेंगे
॰ मंदिरों में श्रद्धालुओं-यात्रियों का प्रवेश वर्जित रहेगा
॰ कहीं भी आयोजन में 50 से ज्यादा की उपस्थिति नहीं होगी
॰ पर्वत पर बनी टोंके, मंदिर है, इसलिए वहां दर्शन नहीं कर सकेंगे
॰ अगर आप ट्रेक्रिंग के शौकीन हैं, तो ही केवल पहाड़ पर जा सकते हैं, पर टोकों पर नहीं जाएंगे।
॰ अगर भीड़ बड़ी तो, देवघर की भांति बैरीकेड लगाकर रास्ते रोक दिये जाएंगे और पुलिस कड़ी कार्रवाही करेगी।
॰ डीसी का स्पष्ट अनुरोध : यात्री वंदना के लिये अभी नहीं आयें
पिछले कुछ समय से पिछले वर्ष की भांति मोक्ष सप्तमी (15 अगस्त) के पावन अवसर पर अनादिनिधन तीर्थ श्री सम्मेदशिखरजी पर्वत की वंदना और स्वर्णभद्र कूट पर निर्वाण लाडू चढ़ाने के प्रति उहपोह की स्थिति बनी हुई है। सोशल मीडिया पर तरह-तरह की पोस्ट की जा रही हैं, जिससे शंका और बढ़ जाती है, वहीं डेढ़ बरस से यात्रियों के लिये आतुर तलहटी की धर्मशालाएं उनका बेकरारी से इंतजार कर रही हैं, वो भी दो कारणों से।
पहला, शिखरजी में बहुत वर्षों बाद तीन बड़े संतों के साथ सौ से ज्यादा पिच्छी विराजमान हैं, वहीं मोक्ष सप्तमी एक ऐसा अवसर है, जिस समय पर्वत वंदना के लिये 30-35 हजार जैन श्रद्धालु यहां आते हैं। वैसे 27 किमी लम्बे वंदना मार्ग में इतने श्रद्धालुओं का रहना संभव भी हो सकता है, अगर वे भीड़ ना बनायें और दूरी बनाकर रखें पर, निकट ही देवघर में जहां रोजाना मंदिर दर्शन हेतु दो लाख तक लोग आते रहे हैं, वहां रोक के कारण, सभी की नजरें शिखरजी पर भी रोक लगाने की है, यानि हम नहीं, तो तुम नहीं। बस यही हमारी विकट स्थिति है, हमें अपने सुख से ज्यादा दूसरे के दुखी होने में ज्यादा आनंद आता है। पूरी तरह रोक के बावजूद आज भी वहां 15-20 हजार लोग आ ही रहे हैं, यानि वो संख्या जो जैनियों की यहां आने की है, वहां 500 मंदिर और यहां 27 किमी क्षेत्र, पर तब भी रोक, क्योंकि देवघर में भी तो रोक हैं। हकीकत तो यह है कि झारखंड सरकार के दिशा-निर्देश में पहाड़ की वंदना करने पर कोई रोक नहीं है।
इस बारे में सान्ध्य महालक्ष्मी ने गिरिडीह के उपायुक्त राहुल सिन्हा जी से सभी बिंदुओं पर बात की, उन्होंने कुछ गोलमोल जवाब दिये, पर बार-बार स्पष्ट करने पर उन्होंने खुलासा भी किया, उसी वार्ता का संक्षिप्त अंश –
महालक्ष्मी – भाई साहब, स्थानीय समाचार पत्र दैनिक भास्कर में आपके नाम से समाचार प्रकाशित हुआ है कि सभी धर्मशालाएं खुली हैं, पर मंदिर बंद हैं यानि वहां प्रक्षाल पूजा नहीं कर सकते। यानि देशभर से यात्री मधुबन में आकर ठहर सकते हैं।
डीसी – नहीं, मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बंद हैं।
महालक्ष्मी – अब वे 27 यात्री किमी की पावन पहाड़ की वंदना क्या कर सकते हैं?
डीसी – नहीं, मंदिर श्रद्धालुओं के लिए बंद हैं।
महालक्ष्मी – एक उदाहरण लेता हूं, माना मंदिर बंद हैं, पर मैं दिल्ली से आकर यहां किसी भी धर्मशाला में ठहर जाता हूं। मंदिर के अंदर नहीं जाता, पर पहाड़ पर नौ किमी चढ़ना, ऊपर नौ किमी पांच पहाड़ों पर जाना, फिर नौ किमी उतरना, यानि 27 किमी की वंदना तो कर सकता हूं या नहीं।
डीसी : पहाड़ पर वंदना नहीं कर सकते। आप पहाड़ पर जा सकते हैं, पर मंदिर में नहीं जा सकते।
महालक्ष्मी – जैसा आपने कहा गाइड लाइंस अनुसार नीचे तलहटी में सारे मंदिर बंद हैं, उनमें हम नहीं जा सकते, पर मैं पहाड़ी की वंदना की बात कर रहा हूं।
डीसी : आपका वंदना से मतलब, आप पहाड़ पर ट्रेकिंग करना चाहते हैं?
महालक्ष्मी – हम नौ किमी पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं, फिर ऊपर 25 छोटी-छोटी टोंक बनी हैं, उन पर 4-5 सीढ़ी चढ़ें, परिक्रमा लगाई, वापस लौट जाते हैं। एक बस पारस टोंक हैं …
डीसी : आप जानना क्या चाह रहे हैं?
महालक्ष्मी – इसलिये यह जानना चाह रहे हैं कि मैं पहाड़ पर टोंको के दर्शन के लिए वंदना करने जा सकता हूं या नहीं।
डीसी : गाइडलाइन में लिखी बातों के अलावा, अन्य बातों पर क्लेरिफिकेशन (स्पष्टीकरण) नहीं दे सकते। मैं तो एक ही बिंदू जानता हूं जो सरकार ने कहा है, जितने भी मंदिर हैं, मंदिर के अंदर बाहरी श्रद्धालुओं का प्रवेश वर्जित है, अब बाकी बात लोग अपने आप इंटरप्रेट (व्याख्या) करें।
महालक्ष्मी – हम भी आपसे सिर्फ यही पूछ रहे हैं कि पहाड़ पर वंदना हम कर सकते हैं या नहीं, क्योंकि आप इसमें क्षेत्र की सुप्रीम अथोरिटी हैं।
डीसी : नहीं हम नहीं, हम केवल अनुपालन कराने वाले हैं। आप मंदिर के अंदर दर्शन नहीं कर सकते।
महालक्ष्मी – मैं आपसे सीधा पूछ रहा हूं कि इसका मतलब हम वंदना करने जा सकते हैं।
डीसी : आप स्वयं इंटरप्रेट (व्याख्या) कर लीजिए, पर आप वंदना करने जाएंगे, तो मंदिर भी जाएंगे। और आप जब मंदिर जाएंगे, तो कोई पत्रकार फोटो खींचकर डाल देगा कि मंदिर बंद हैं, तो ये कैसे आ गये?
महालक्ष्मी – किसी के फोटो खींचने पर तो नहीं रोक सकते, यह ठीक है।
डीसी : यहां का जो सबसे बड़ा मंदिर है देवघर। अभी श्रावण महीना चल रहा है और इसमें पर डे (प्रतिदिन) दो लाख लोग दर्शन को आते हैं। उनके दर्शन की रोक है। रोक के बावजूद चोरी-छिपे 10-20 हजार तो आ ही जाते हैं। उनको भी मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता, पुलिस बाहर ही बेरिकेडिंग लगाकर, डंडे-वंडे चलाकर भगा देती है। तो मेरी समझ से इस प्रकार की चीजें एलाऊ ही नहीं है, तो बाकी श्रद्धालुओं को यहां आना ही क्यों है? आप बार-बार क्यों कह रहे हैं? कुछ तो कहते हैं, जब मंदिर में दर्शन नहीं तो धर्मशाला में ठहरना क्यों एलाऊ कर रखा है।
अरे! धर्मशाला, होटल, गेस्ट हाउस तो अलग चीज हैं। आप किसी दूसरे परपज से भी तो आ सकते हैं?
महालक्ष्मी – आपने सवाल भी कर लिया और जवाब भी दे दिया। पर बताइये, कोई 500- हजार किमी दूर से यहां शिखरजी आता है, और वह पहाड़ पर नहीं जा सकता, तो उसके आने का औचित्य क्या रह गया?
डीसी : पर इस कारण से पूरे होटल – गेस्ट हाउस – धर्मशालाओं को बंद थोड़े ही कर सकते हैं? इन्हें बंद करने का आर्डर नहीं है। मैं पहले देवघर में था। वहां कम से कम 500 होटल – गेस्ट हाउस हैं, अब उनको बंद क्यों करेंगे? दस तरह के लोग आते हैं। यह हमारा नहीं, राज्य सरकार का नियम है, जिसका हम अनुपालन करा रहे हैं।
महालक्ष्मी – तो इसको हम मोटी भाषा में इस तरह कह सकते हैं कि हम पहाड़ पर वंदना करने तो जा सकते हैं, पर टोंकों पर दर्शन नहीं कर सकते।
डीसी : पर प्रेक्टीकली दिस इज नॉट पोसिबल (क्रियान्वयन में यह संभव नहीं) आप वंदना करने जाएंगे, तो वहां बहुत सारे मंदिर हैं, उनमें जरूर जाएंगे। ये तो होगा ही और फिर कोई फोटो खींच कर डाल देगा। फिर क्वशयन श्रद्धालु पर आ जाएंगे और प्रशासन पर भी। प्रशासन ने कैसे एलाऊ कर दिया? श्रद्धालु को अपना कोई फेस होता नहीं, पर प्रशासन पर प्रश्न लग जाता है।
महालक्ष्मी – तो यह आदेश अभी लागू है और कब तक, यानि अगले आदेश तक, जिसकी तिथि मालूम नहीं।
डीसी : हां, यह अगले आदेश तक लागू है।
इस बातचीत से कुछ संकेत स्पष्ट हो गये ….
पहला : धर्मशाला में ठहर सकते हैं, पर मोक्ष सप्तमी से पहले ही वंदना पर रोक लगा दी जाएगी।
दूसरा : भीड़ की संभावना पर प्रवेश द्वार पर ही बेरीकेडिंग कर दी जाएगी और पुलिस देवघर की तरह लाठी भी उठा सकती है।
तीसरा : स्थानीय लोगों को संभवत: पूरी छूट होगी।
लगता है कि इस बार भी 100-200 लोगों के साथ स्वर्णभद्र कूट पर लाडू चढ़ाया जाएगा।